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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल
के भविष्यदत्त चरित की प्रतिलिपि की गई। भविष्यदत्तरित प्रपन को कृति है। इसी वर्ष एक और ग्रंथ जिणदत्तचरिउ की प्रतिलिपि की गई। प्रस्तुत पांडुलिपि माचार्य ललितकीति को भेंट स्वरूप दी गई। उस समय साह दुलहा वहाँ के प्रमुख श्रावक थे।
संवत् 1630 में या इसके पूर्व ब्रह्म रायमल्ल रणथम्भौर पहुंचे थे । उस समय किले पर सम्राट अकबर का शासन था । तथा वहाँ अपेक्षाकृत शान्ति थी । इसी कारण कवि वहाँ श्रीपाल रास की रचना कर सके । ब्रह्म रायमस्ल वहाँ कितने समय तक रहे इस सम्बन्ध में तो कोई उल्लेख नहीं मिलता किन्तु कवि ने किले की समृद्धि की प्रशंसा की है तथा उसे धन तथा सम्पत्ति का खजाना कहा है । किले के चारों प्रोर पानी से भरे हुए सरोवर थे । यही नहीं वन उपवन उद्यान से वह युक्त था । किले में बहुत से जिन मन्दिर थे जो अतीव शोभायमान थे ।
संवत 1644 में भट्टारक सकलभूषण के षटकर्मोपदेश माला की प्रतिलिपि श्रीमती पानंती ने सम्पन्न करायी। उस समय यहाँ राव जगन्नाथ का शासन था । दुर्ग के चारों ओर शान्सि थी तथा वहाँ के निवासियों का ध्यान साहित्य प्रचार की ओर जाने लगा था। इसके पश्चात् संवत् 1659 में थी ऋषभदेव जी अग्रवाल के आग्रह से तत्वार्थसूत्र की प्रति की गई। इससे अग्रवाल जन समाज में पूर्ण प्रभाव था। राजा जगत्राथ ने टोडा के निवासी खीमसी को अपना मन्त्री बनाया जिन्होंने किले पर एक जिन मन्दिर का निर्माण कराया था। हरसोर
हरसोर की राजस्थान के प्राचीन नगरों में गणना की जाती है । जो नागौर जिले में पुष्कर से डेगाना जाने वाले बस सड़क पर स्थित है। 12 वीं शतादिद्र में यह नगर प्रसिद्धि पा चुका था। जिस प्रकार श्रीमाल से श्रीमाली तथा प्रोसिया से नोसवाल, खंडेला से खण्डेलवाल जाति का निकास हुया था उसी प्रकार हर मोर से हरसूरा जाति की उत्पत्ति हुई थी। इसी तरह हर्षपुरीय गच्छ का भी इमी नगर से उत्पत्ति हुई थी। हरसोर पर प्रारम्भ में शाकम्भरी के चौहानों का शासन था। चौहानों के पश्चात् हरसोर पर मुसलमानों का अधिकार हो गया ।।
1. Ancient Cities and Town, of Rajasthan by Dr. K. C. Jain, Page
328. 2. Ibid, Page 330.