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गत कुछ वर्षों से ऐसी ही किसी एक संस्था की पावश्यकता को अनुभव किमा जा रहा था जो योजना बद्ध ढंग से समूचे भाषागत जन साहित्य का प्रकाशन कर सके । अस्टूबर ७६ में अकस्मात थी महावीर ग्रन्थ अकादमी का नाम सामने पाया और संस्था का यही नाम रखना उचित समझा । नामकरण के साथ ही एक पंचवर्षीय योजना भी तैयार की।
सर्व प्रथम जन कषियों द्वारा निबद्ध हिन्दी साहित्य को प्रकाशित करने का विचार सामने आया क्योंकि संवत् १४०१ से लेकर १६... तक हिन्दी एवं राजस्थानी में जिस प्रकार के विपुल साहित्य का निर्माण किया गया वह सभी दृष्टियों से मत्रत्वपूर्ण है और उसके विस्तृत परिचय की महती पावश्यकता है 1 हिन्दी भाषा में जिस प्रकार जायसी, सूरदास, मीरा, तुलसीदास, रसखान, बिहारी, दादू, रज्जव, जैसे पचासों कवि हुये सयों के विविध सार है. चुका ईमोर प्रागे भो होता रहेगा तथा जिनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को नये-नये प्रायामों के प्राधार परखा जा रहा है लेकिन इस प्रकार से प्रकाशित होने वासी पुस्तकों में जैन कवियों का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता और यदि कहीं मिलता भी है तो वह एकदम संक्षिप्त एवं अपूर्ण होता है । जैन कवियों में सघा, रामसिंह, ब्रह्म जिनदास, शान. भूषण, बूघराज, ब्रह्म रायमल्ल, विद्याभूषण, त्रिभुवनकीति, समयसुन्दर, यशोधर, रन कीर्ति, सोमसेन, बनारसीदास, भगवतीदास, भूधरदास, धानतराय, बुधजन, पचन्द, बुलाकीकास, किशनसिह, दौलतराम जैसे कितने ही महाकवि हैं जिन्होंने हिन्दी में सैकड़ों रचनायें निबस को और उसके विकास में अपना सर्वाधिक योगदान दिया लेकिन इनमें सघार राजसिंह, बनारसीदास एवं दौलतराम जैसे कुछ कवियों को छोड मेष के सम्बन्ध हम स्वयं अन्धेरे में है । इसलिये इन कवियों के जीवन एवं व्यक्तित्व के अध्ययन के साथ ही तथा उनकी कृतियों के मूल भाग को सम्पादित एवं प्रकाशित करने की अतीव अावश्यकता है । मूल कृतियों के दिना कोई भी विद्वान् कवियों के मूल्यांकन के कार्य में प्रागे नहीं बढ़ सकता । पोर ने माज शोधार्थी विभिन्न भण्डारों में जाकर उनकी मूल पाण्डुलिपियों के अध्ययन का कष्ट साध्य परिश्रम करना चाहता है।
इसलिये प्रथम पंचवर्षीय के अन्तर्गत २० भागों में कम से कम पचास जैन ववियों का जीवन परिचय तथा उनके कृतित्व का सूक्ष्म अध्ययन प्रस्तुत करना ही इस महावीर ग्रन्थ अकादमी की स्थापना का मुख्य उद्देश्य निश्चित किया गया है।