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महाकवि ब्रह्म रायमल्ल राजनैतिक स्थिति
ब्रह्म रायमल्ल के जीवन का उत्कर्ष काल संवत् १६०१ से १६४० तक रहा । इस अवधि में देश की राजनैलिक स्थिति में बराबर परिवर्तन होता रहा । इन ४० वर्षों में देहली के शासन पर एक के बाद दुसरे बादशाह होते गये । कुछ बादशाहों की तो स्वतः ही मृत्यु हो गयी और कुछ को युद्ध में पराजित होना पड़ा । प्रारम्भ के १२ वर्षों में शेरशाह सूरि एवं सलीमशाह सूरि का शासन तो फिर भी स्थिर रहा लेकिन उसके पश्चात देश में अगता फैल गयी। सूद पानहैप का उदय एवं प्रस्त, हुमायु द्वारा दिल्ली पर पुनः विजय एवं कुछ ही समय पश्चाद उसकी मृत्यु जैसी घटनाएं घटती गयीं पोर देश में अराजकवा के अतिरिक्त स्थायी शासन स्थापित नहीं हो सका। संवत् १६१३ (सन् १५५६) में अकबर देहली के सिंहासन पर बैठा लेकिन उसने भी अपने भापको मुसीबतों से घिरा पाया । चारों मोर प्रशांति थी । छोटे-छोटे शासन स्थापित हो रहे थे और उनमें भी परस्पर युद्ध हुआ करते थे । बादशाह अकबर ने देश में स्थिर एवं सशक्त शासन स्थापित करने में सफलता प्राप्त की और बह दीर्घ काल तक देश के बड़े भाग पर शासन करता रहा ।
राजस्थान के मेवाड़ के अतिरिक्त सभी राजाओं से अकबर ने मधुर संबंध स्थापित किये। सर्वप्रथम उसने भामेर के तत्कालीन राजा भारमल्ल से मित्रता स्थापित की और उसे पांच हजारी का मन सब का पद दिया । भारमल्ल के पश्चात् राजा भगवन्तदास ( १५७४-१५८६ ) प्रामेर के शासक बने । उनका भी मुगल दरबार से घनिष्ट संबंध रहा । ब्रह्म रायमल्ल ने राजा भगवन्त के शासन का अपने काव्य 'भविष्यदस्त चौपई' में उल्लेख किया है। कवि उस समय सांगानेर में थे जहां परस्पर में पूर्ण सद्भाव एवं व्यापारिक स्मृद्धि श्री। वहां बहुत बड़ी जंन बस्ती थी। हूँढार प्रदेश के प्रन्य नगरों में भी शांति थी । जब कवि टोडारायसिंह, झुझुनू, रणथम्भौर, सांभर एवं धोलपुर गये तो वहां भी कवि को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा । कवि ने झुंझनू के शासक के नाम का उल्लेख नहीं किया तथा सांभर के शासक का नाम भी नहीं लिखा जिससे मालूम पड़ता है कि वे दोनों ही नगर के सामान्य शासक थे।
स्वयं कवि ने अपने काम्बों में तत्कालीन राजनैतिक स्थिति के बारे में कोई विशेष उल्लेख तो नहीं किया जिससे यह तो कहा जा सकता है कि स्वय कवि को किसी विशेष अराजकता अथवा दमन का सामना नहीं करना पड़ा तथा वे जहाँ भी जाते रहे उन्हें शान्त एवं धामिक वातावरण मिलता रहा ।