SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि भूधरदास : तो सभी ने किया है। परन्तु हठयोगी साधना की सूक्ष्मताओं का ज्ञान और अनुभव कबीरदास, सुन्दरदास तथा हरिदास निरंजनी को विशेष रूप से था। उन्होंने सामान्य जनता के लिए सहज साधना का विधान किया है तथा विशिष्ट साधकों को कुण्डलिनी की साधना के मार्ग पर अग्रसर होने का उपदेश दिया है। इनके काव्य में वर्णित योग प्रक्रिया अनुभव समर्थित है। वैसे हठयोग, ध्यानयोग, प्रेमयोग आदि योग-विधियों का जितना पुस्तकीय एवं अनुभूतिमूलक ज्ञान सुन्दरदास को था, उतना अन्य किसी सन्त कवि को नहीं। दादू, नानक रैदास, जम्भनाथ, सींगा, भीषण, रज्जब, बावरी साहब, मलूकदास, बाबालाल आदि की साधना पद्धति में योगतत्त्व की प्रधानता नहीं है। इन्होंने कहीं - कहीं सुरत-योग, शब्द योग आदि का उल्लेख तो किया है किन्तु उतनी अन्तरंगता और आग्रह के साथ नहीं।" 1 ____14. रहस्यवाद • सन्तों की रचनाओं का उद्देश्य अपनी अनुभूति की अभिव्यक्ति करना रहा है । जब किसी साधारण तथा इन्द्रियगत अनुभव को ही व्यक्त करना अति कठिन है तो फिर असाधारण एवं इन्द्रियातीत अनुभव को व्यक्त करना तो दुस्साध्य है ही। ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति में अस्पष्टता आ जाने के कारण कवि की रचना बहुधा रहस्यमयी बन जाती है, तब उसके परिचित प्रतीकों के प्रयोग अपूर्व अनुभव के विधायक बन जाते हैं। किसी भी इन्द्रियातीत वस्तु का अनुभव प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है, परन्तु प्रतीकों का आधार सामान्यत: इन्द्रियगम्य वस्तुएँ ही बना करती है ऐसी दशा में उन दोनों में पूर्ण सामंजस्य की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है । “सन्तों ने ऐसे प्रतीकों के प्रयोग बार-बार किये हैं और इस प्रकार हमारे लिए कुछ ऐसे चित्रों का निर्माण करते आये हैं, जो उनकी उक्त भावना का न्यूनाधिक अनुकरण कर सकें। भाषा उन्हें इस कार्य में पूरी सहायता स्वाभावत: नहीं कर पायी है। इसके लिए उनके जितने ऐसे प्रयोग हुए हैं, वे अधिकतर दोषपूर्ण हो गए हैं। सन्तों ने जहाँ-जहाँ स्वानुभूति से भिन्न भिन्न विषयों के वर्णन किये हैं, वहाँ वहाँ उनकी प्रतिभा तथा अभ्यास के अनुसार भाषा, छन्द एवं शैली में भी उन्हें बराबर सफलता मिलती गई है। वहाँ पर उनकी योग्यता स्पष्ट ही दीखती है। अनुभव का अर्थ है प्रत्यक्ष ज्ञान । परमतत्त्व का प्रत्यक्ष ज्ञान अर्थात् 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास--- सम्पादक डॉ. नगेन्द्र पृष्ठ 131 2. सन्त साहित्य की रूपरेखा, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी, पृष्ठ 73
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy