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________________ 36 महाकवि भूधरदास: गुरु की महिमा सचमुच अवर्णनीय है - धरती सब कागद करू लेखनि सब बन जाय। सात समंद की मसि कर, गुरु-गुन लिखा न आय ।। कबीर कहते हैं कि मैं तो अज्ञान से भरी लौकिक मान्यताओं और पाखण्डयुक्त वेद के पीछे चला जा रहा था कि सामने से सदगरु मिल गये और उन्होंने ज्ञान का दीपक मेरे हाथ में दे दिया" - पी? लागे जाइ था, लोक वेद के साथि। आगे चैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि ।।' सुन्दरदास के दयालु गुरु ने तो परमात्मा का दर्शन भी करा दिया है - परमातम सों आतमा, जुदे रहे बहुकाल। सुन्दर मेला कर दिया, सद्गुरु मिले दयाल॥ दादू को गुरुदेव के आशीर्वाद या प्रसाद से अगाध आगम के दर्शन हुए है दादू गैल माहि गुरुदेव मिल्या, पाया हम परसाद । __ मस्तक मेरे कर घरया, देख्या अगम अगाध ॥" साथ ही वे भक्ति-मुक्ति का भंडार मिलना तथा भगवान के दर्शन होना भी सद्गुरु के मिलने पर ही मानते हैं - सद्गुरु मिले तो पाइये, भक्ति मुक्ति भंडार। ___ दादू सहजै देखिए, साहिब का दीदार ।।* गरीबदास सद्गुरु को पारसरूप बताते हैं ; जो साधक शिष्य को क्षण मात्र में स्वर्ण बना देता है - सतगुरु पारस रूप है हमरी लोहा जात। पलक बीच कंचन करे, पलटे पिण्डा गात ।। सद्गुरु ऊपर से दण्डित भी करता है तथा अन्दर से हाथ का सहारा देकर निर्माण और उन्नति का पथ भी प्रशस्त करता है 1. कबीर ग्रन्थावली (गुरुदेव को अंग) पृष्ठ 2 साखी 11 2. सुन्दर दर्शन, डॉ. त्रिलोकीनारायण दीक्षित इलाहाबाद पृष्ठ 177 3. सन्त सुधासार दादू पृष्ठ 449 साखी 1 4. सन्त दर्शन दादू गुरुदेव को अंग पाद टिप्पणी 3 पृष्ठ 22 डॉ. त्रिलोकीनारायण दीक्षित साहित्य निकेतन कानपुर
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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