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________________ महाकवि भूधरदास : समाज में सदाचरण की प्रतिष्ठा के लिए कवि ने पार्श्वपुराण में कमठ द्वारा अपने छोटे भाई की, जो पुत्रीसम विवेचित की गई है, दुराचार किये जाने पर राजा द्वारा दण्ड स्वरूप मुँह कालाकर देश निकाला दिये जाने का उल्लेख किया हैं ।' अन्य कृति में भी उन्होंने इस कुकर्म परस्त्रीसेवन की खुलकर आलोचना की है। इस तरह कवि द्वारा समाज में सदाचार को स्थापना की गई है । 444 कवि की उपदेश शैली "ऐग की करना चाहिए" के भाव लिए हुए नहीं है; अपितु परिस्थितयों, परिणामों आदि का दिग्दर्शन कराकर पाठक को स्वयं निर्णय करने की ओर प्रेरित करने वाली है। यह कवि की अभिव्यंजना शैली की अनूठी विशेषता है। इसप्रकार विचार अभिव्यंजना की दृष्टि से कवि की हिन्दी साहित्य को मौलिक देन रही है। भारतीय साहित्य के संरक्षण के साथ ही साथ कवि ने अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति का पोषण भी किया है। " वस्तुतः भूधरसाहित्य की आस्था उस धार्मिक एवं आध्यात्मिक उन्नति या विकास में है; जहाँ मैं-तूं ज्ञाता ज्ञेय, गुण-गुणी आदि सभी भेद तिरोहित हो जाते हैं और आत्मा अतीन्द्रिय आनन्द या निराकुल सुख को प्राप्त करता है । निराकुल सुख व सच्ची आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के लिए भूधरसाहित्य की उपादेयता आज भी है और आगे भी रहेगी । भूधरसाहित्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर का सजग प्रहरी एवं आगामी पीढ़ी का प्रेरणास्तोत्र है। उसने रीतिकालीन विषम परिस्थितियों में भी अपना अस्तित्व कायम रखकर मानवीय चेतना को सन्तुलित एवं समुन्नत किया है। इस दृष्टि से भूधरसाहित्य की प्रासंगिकता वर्तमान में भी है और भौतिकता के विरुद्ध भविष्य में भी रहेगी । इसप्रकार निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि भूधरदास ने हिन्दी साहित्य के क्रमिक विकास में पर्याप्त योगदान दिया तथा उसे आध्यात्मिक, नैतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक पृष्ठभूमि में प्रतिष्ठित करके अज्ञानान्धकार में भटकते प्राणियों को दिशा-निर्देश कर ज्ञान- आलोक प्रदान किया है। 1. पार्श्वपुराण पृष्ठ 8 2. जैनशतक छन्द 57 से 58
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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