________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
443
सिद्धान्त का निरूपण किया है तथा यह घोषणा की है कि जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल भोगना पड़ता है।'
भारतीय संस्कृति से प्रेरित प्राणी सदैव जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहा है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए भोग, परिग्रह, तृष्णा आदि का त्याग अति आवश्यक माना गया है; क्योंकि इन सबमें सच्चा सुख एवं शांति कभी नहीं मिल सकती है। अतः भरदास ने इन सबको छोड़कर आत्मा परिष्कार करने के लिए संसारी जीव को संबोधा है । '
भारतवर्ष त्यागियों, ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, विचारकों और दार्शनिकों का देश है - ऐसा संसार में प्रसिद्ध है। यहाँ का प्रत्येक साधक संयम एवं तप द्वारा आत्मपरिष्कार करना चाहता है। इसी दृष्टि से भूधरदास ने मुनि के लिए बारह भावनाएँ, बारह तप, दस धर्म, बाईस परीषह, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति तथा श्रावक के लिए बारह व्रतों का विधान किया है एवं प्रत्येक भारतीय को आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है ।
आत्मा बिना किसी साधनापरक पूर्व अभ्यास के निराकार पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकता है। इसीलिए उसे ध्यान की एकाग्रता हेतु किसी मूर्त आधार की आवश्यकता होती है। इसी दृष्टि को ध्यान में रखकर भूधरदास ने प्रतिमा पूजन का समर्थन किया। साथ ही उसे भावों की शुद्धता का कारण भी बताया है। प्रतिमा पूजन के विषय में तत्कालीन समाज में प्रचलित जितनी भी सम्भावित शंकाएँ थीं, उन सबका समाधान प्रस्तुत कर कवि ने समाज का बड़ा उपकार किया है। 3
कवि ने अपनी पार्श्वपुराण नामक कृति में पार्श्वनाथ के जीवनवृत के साथ-साथ जैन दर्शन का सरलीकरण, सुबोध एवं सहज शैली में किया है। कवि के इस प्रयास से न केवल तत्कालीन जैन समाज, अपितु जैनेतर समाज भी लाभान्वित हुआ है । ऐसे उपयोगी ग्रन्थों के पारायण से आज भी समाज
अपना कल्याण कर सकता है।
1. जैसी करनी आचरै, तेसो ही फल होय ।
इन्द्रायन की बेलि के आम न लागे कोय ! पार्श्वपुराण पृष्ठ ४
·
2. पार्श्वपुराण पृष्ठ 60-61, जैनशतक छन्द 25, भूधरविलास पद 32 3. पार्श्वपुराण पृष्ठ 26-27