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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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तथा व्यावहारिक शिक्षाओं द्वारा धर्माचरण का पाठ पढ़ाया। गृहस्थ जीवन में धर्माचरण हेतु देवपूजा, गुरुपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान • इन छह आवश्यक कर्मों का महत्व प्रतिपादित किया तथा अहिंसा, सत्य, अचौर्य, बह्मचर्य, अपरिग्रह आदि व्रतों का पालन करने का आदेश दिया।
- भूधरदास ने अपने उपदेशों द्वारा हमारी संस्कृति की रक्षा की, मानवीय मूल्यों को पुष्ट किया, जाति-पाँति का भेद मिटाया, स्वावलम्बन का भाव जगाकर पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी तथा व्यक्ति, समाज, राष्ट्र व विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया। इस दृष्टि से भूघरदास का प्रदेय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
इसी दृष्टि से भूधरदास ने धर्म का ऐसा सार्वजनिक, सार्वभौमिक एवं सार्वकालिक रूप प्रस्तुत किया, जो मांत्र सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक भी है। उस धर्म को किसी भी धर्म, जाति, वर्ग या सम्प्रदाय का व्यक्ति आसानी से अपने जीवन में अपना सकता है। चूंकि कवि ने अपने साहित्यसृजन द्वारा अनुभवाश्रित सत्य को उजागर किया है और अनुभव पर आधारित सत्य की प्रतिष्ठा सभी जातियों, धर्मों एवं सम्प्रदायों में समान है। अत: भूधरसाहित्य किसी जाति, धर्म या सम्प्रदाय विशेष की धरोहर नहीं, अपितु समग्र मानव समाज की थाती है; जिसमें आत्मकल्याण के साथ विश्वकल्याण की भावना निहित है। व्यक्तिहित के साथ समष्टिहित संलग्न है । भूधरदास ने मानवतावाद, समाजवाद और अध्यात्मवाद के जिन विशिष्ट मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास किया है, उनसे समस्त वैर-विरोध, कृत्रिम भेदोपभेद एवं विषमताएँ स्वत: विनष्ट हो गई हैं तथा मैत्री, एकता, समानता आदि भाव उदित हुए हैं।
कवि ने सम्प्रदायगत संकीर्णताओं, समाजगत कुरीतियों एवं बाह्याडम्बरों के कोरे प्रदर्शन से दूर रहकर मानवमात्र के लिए अपने साहित्य की रचना की
और अध्यात्मप्रधान भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सन्तों की उच्च भाव भूमि के स्तर पर पहुँचकर कवि ने सम्प्रदायगत, रूढ़िगत एवं जातिगत आचार - विचारों की संकीर्णता को त्यागकर, सम्पूर्ण मानव जगत को दिव्य आदर्श के दर्शन कराये हैं।' 1. जैनशतक छन्द 46