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________________ 430 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. 33. 34. 35. 36. 37. 38. 39. महाकवि भूधरदास: मृत्यु की अनिवार्यता एवं पुनर्जन्म होना, दोनों ने स्वीकार किया है । सदाचार या आचरण पर दोनों ने समान बल दिया । दोनों ने ऊंच-नीच का भेद स्वीकार किया अर्थात् जातिवाद का विरोध दोनों ने किया । साधना के लिए साधु के साथ-साथ गृहस्थ जीवन का समर्थन दोनों ने किया । मांस खाना, शराब पीना, जुआ खेलना, वेश्या एवं परस्त्री का सेवन करना, शिकार करना, चोरी करना आदि व्यसनों का निषेध दोनों ने समान रूप से किया है । धार्मिक पाखंड़ों एवं क्रियाकाण्डों का विरोध दोनों ने किया । दान का महत्व दोनों ने समान रूप से प्रतिपादित किया । सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, मौन, आत्मसंयम, सन्तोष आदि का महत्व दोनों ने समान प्रतिपादित किया तथा दुष्प्रवृत्तियों पर रोक लगाई। नारी या काम भाव का निषेध एवं ब्रह्मचर्य पर बल दोनों में समान हैं । निन्दा करने वालों की परवाह न करने का उपदेश दोनों में है । शरीर शुद्धि के साथ अंतरंग की शुद्धि पर बल दोनों में दिया गया है । दोनों के द्वारा व्यवहार की महत्ता या कथनी करनी के ऐक्य पर समान बल दिया गया है। मैत्री भाव की प्रेरणा एवं समाज सुधार की भावना दोनों में समान रूप से दिखलाई देती है । यद्यपि सन्तसाहित्य में भक्ति का निषेध नहीं है, तथापि सन्त मात्र भक्त न रहकर भगवान भी बन जाना चाहता है । उसीप्रकार भूधरसाहित्य में भक्ति का विधान होकर भी भक्त से भगवान बनने का मार्ग प्रशस्त किया गया है I
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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