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अहो आगे आये जब झोपरी जरन लागी,
कुआ के खुदायें तब कौन काज सरि है । ' सौ वर्ष की आयु का लेखा-जोखा देते हुए कवि कहता है - सौ वरव आयु ताका लेखा करि देखा सबै, आधी तौ अकारथ सोवत विहाय रे । आयी मैं अनेक रोग बाल-वृद्ध-दशा भोग,
ऐसे बीत जाय रे ॥ ताहि तु विचार सही, नीकें एन लाय रे ॥ खातिर मैं आवै तो खलासी कर इतने मैं,
कारज की बात यही
भावै फाँस फंद बीच दीनौ समुझाय रे ॥2
इसी सन्दर्भ में कवि अपनी कुशलता के बारे में बताता है -
जोई दिन कटै सोई, आयु मैं अवसि घर्दै,
और हू संयोग केते
बाकी अब कहा रही
बूँद बूँद बीतै जैसें,
अंजुली कौ जल है।
देह नित क्षीन होत,
नैन तेज हीन होत,
जोबन मलीन होत, छोन होत बल है । आवै जरा नेरी, तकै अंतक अहेरी, आवै, परभौ नजीक, जात नरभौ निफल है। मिलकै मिलापी जन, पूछत कुशल मेरी, ऐसी दशा माहीं मित्र ! काहे की कुशल है ।
नामदिध
1. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 26
2. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 27
3. जैनशतक, भूधरदास, छन्द 37