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महाकवि भूषरदास :
2. राम नाम का महत्त्व - सन्तों द्वारा प्रतिपादित अनिर्वचनीय परमतत्त्व नाम जप द्वारा प्राप्त किया जा सकता । शब्द ब्रह्म भी है और ब्रह्म प्राप्ति का साधन भी हैं। अतएव सन्तों ने व्यक्तिगत जीवन में नाम-जप किया है तथा समाज के लिए नाम स्मरण की महत्ता भी बतलायी है। नाम जप का महत्त्व निर्विवाद है।
स्मृतियों, पुराणों तथा बौद्ध, शैव, वैष्णव, शाक्त आदि तन्त्रों में नाम जप का महत्त्व एवं उसके बाह्य-आन्तरिक, स्थल-सूक्ष्म आदि विविध प्रकारों का पर्याप्त मात्रा में विवेचन उपलब्ध होता है। प्राचीन साहित्य में भी नाम स्मरण का महत्त्व बतलाया गया है | श्री मद्भागवत् गीता में कहा है -
अनन्यचेता: सततं यो मां स्परन्ति नित्यशः ।।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्यमुक्तस्य योगिनः ॥' नारद पुराण का कथन है कि -
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेन मेव केवलम्।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा ॥ * कबीर आदि नाम को मूल तथा अन्य मन्त्रों को डाल बताते हुए कहते हैं -
आदि नाम सब मूल है और मन्त्र सब झर।
कहे कबीर निज नम बिन, बडि मआ संसार ॥ नानक के अनुसार राम नाम से ही उद्धार सम्भव है अत: इसका नित्य भजन करना चाहिए -
"कह नानक भज राम नाम नित आते होत उवार'' सन्त चरनदास राम नाम को जीवन के प्रत्येक कार्य-कलाप में समाविष्ट करते हुए कहते हैं -
नापहि ले जल पीजिए, नामहि लेकर खाह।
नामहि लेकर बैठिए, नामहि ले चल राह ।। सन्त गरीबदास के अनुसार नाम दीप ही अलक्ष्य को लक्षित करा सकता है
अगम अनाहद भूमि है जहाँ नाम का दीप।
एक पलक बिछुरै नहीं, रहता नैनों बीच ।।' 1. गीता 8/14 2. नारदपुराण 3. संतवानी संग्रह, भाग 1 4. संतमानी संग्रह, भाग 2 पृष्ठ 47 5. संतबानी संग्रह, भाग 1 6. संवबानी संग्रह, भाग 1