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________________ 388 महाकषि भूधरदास : अभीक्ष्णज्ञानोपयोग - अपनी बुद्धि एवं शक्ति के अनुसार आगम के कहे गये अर्थ को अवधारण करना तथा निरन्तर ज्ञान का अभ्यास करना, चौथी अभीक्ष्णज्ञानोपयोग भावना है । ___ संवेग - धर्म एवं धर्म के फल में विशेष प्रीति एवं संसार से भयभीतपना, जिनागम के अनुसार पाँचवी संवेग भावना है। . यथाशक्ति त्याग - औषधि अभय, ज्ञान और आहार - इन चार प्रकार के महादानों को शक्ति के अनुसार देना, छठवीं यथाशक्ति त्याग भावना है।' यथाशक्ति तप • अनशन आदि बारह प्रकार के मुक्ति देने वाले उत्तम तपों को शक्ति के अनुसार करना, सातवीं यथाशक्ति तप भावना है।' साधु-समाधि - यति वर्ग अर्थात् मुनिराजों को किसी कारण से विघ्न आने पर सहायता करना, साधु-समाधि नामक आठवीं भावना हैं।' वैयावृत्य - जिनागम में कहे गये दस प्रकार के साधुओं का जिनमार्ग में पीड़ित या रोगी देखकर उनकी सेवा सत्कार करना, नौवीं वैयावृत्य भावना __ अर्हद्भक्ति - परमपूज्य अनन्त चतुष्टयवन्त अरहन्त आत्माओं के प्रति स्तुति, विनय, पूजा आदि का भाव, दसवीं अर्हद् भक्ति भावना है।' आचार्य भक्ति - जिनवर द्वारा कहे गये अर्थों का अवधारण करके अनेक प्रकार के ग्रन्थों की रचना करने वाले आचार्यों की भक्ति करना, ग्यारहवीं आचार्य भक्ति भावना है। बहुश्रुत भक्ति - जो विद्या देने वाले, विद्या में लीन रहने वाले, गुणों में प्रधान, पाठकों में प्रवीण हैं, उनके चरणों में हमेशा चित्त रखना अर्थात् उनकी भक्ति करना, बहुश्रुत भक्ति नामक बारहवीं भावना है।' प्रवचन भक्ति - भगवान सर्वज्ञ देव द्वारा कहे गये अनुपम अर्थों और गणधर द्वारा गूंथे हुए ग्रंथों के प्रति पवित्र भक्ति का होना, प्रवचन भक्ति नामक तेरहवीं भावना है। 1 से 10. पार्श्वपुराण, कलकत्ता, भूघरदास, अधिकार 4, पृष्ठ 3
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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