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महाकवि भूधरदास : डॉ. शिवकुमार ने सन्त काव्य की निम्नांकित विशेषताओं का उल्लेख किया है -
1. निर्गुण ईश्वर में विश्वास 2. बहुदेववाद एवं अवतारवाद का विरोध 3. सद्गुरु का महत्त्व 4. जाति पाँति के भेद-भाव का विरोध 5. रूढ़ियों एवं आडम्बरों का विरोध 6. रहस्यवाद 7. भजन एवं नामस्मरण 8. श्रृंगार वर्णन एन रिह की मार्मिक उदिता 9. लोक संग्रह की भावना 10. नारी के प्रति दृष्टिकोण (नारी माया का प्रतीक) 11. माया से सावधानता 12, गेय मुक्तक शैली का प्रयोग ।
सन्त साहित्य अपने आप में अति विशाल एवं व्यापक है इसलिए विभिन्न विद्वानों ने उसकी पृथक्-पृथक् विशेषताएँ बतलायी हैं। उनमें कुछ प्रमुख विषयगत, भावगत, एवं भाषा-शैलीगत विशेषताएँ या मुख्य प्रवृत्तियों विवेचन सहित निम्नलिखित हैं -
1.निर्गुण ब्रह्म या निर्गुण राम में विश्वास - इस क्षणभंगुर जीवन में जो परमध्येय है वह परमतत्त्व, परमब्रह्म परमात्मा है। वेद पुराण आदि सभी उसके विषय में बतलाते हैं, परन्तु फिर भी वह अनिर्वचनीय या अकथनीय ही है। वह परमतत्त्व निर्गुण, निराकार, अनुपम, त्रिगुणातीत, भावाभावविनिर्मुक्त, द्वैताद्वैतविलक्षण, अलख, अलभ, अनाम एवं अरूप है । कबीर के अनुसार वह तत्त्व पूर्ण सत्य है उसे जान लेने का दावा न वे स्वयं करते हैं और दूसरों का दावा स्वीकार करते हैं। वह जैसा कहा जाता है, वैसा नहीं है, वह तो जैसा है वैसा ही है।
(क) जस तू तस ताहि कोई न जान, लोग कहे सब आनहि आन। (ख) जस कचिये तस होत नहिं जस है तैसा होई।
(ग) जहुवां प्रगटि बजावाहु जैसा, जस अनमै कथिया तिनि तैसा। 1. हिन्दी साहित्य युग और प्रवृत्तियाँ - डॉ. शिवकुमार पृष्ठ 114 से 119