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________________ 362 महाकवि भूधरदास : -- - जीवादि तत्त्व का यथावत् सरधान का नाम सम्यग्दर्शन है। मिथ्यादृष्टि केवल आगमज्ञान सो जीवादि सप्ततत्त्व का यथावत् स्वरूप जाने, श्रद्धानकर स्वसंवेदन ज्ञान का अभाव है । निजात्मा के श्रद्धान का अनुभव होइ नाही, नाहीत आत्मज्ञानशून्य पुरुष के तत्वार्थश्रद्धान कार्यकारी नाहीं । आत्मतत्त्व बिना जो जीवादि तत्त्वों का श्रद्धान होई, तिसकू व्यवहार सम्यक्त्व कहिए। तिस सहित निश्चय सम्यक्त्व है । जो रुचि अपने निर्मल ज्ञानमय चैतन्यरूप आत्माते और जीवादि पदार्थ के सन्मुख रुचि होइ सो व्यवहार सम्यक्त्व होइ और पूर्वोक्त अपने आत्मा के सन्मुख रुचि होइ तिसै निश्चय सम्यक्त्व कहिये। सम्यक्त्व की उत्पत्ति दो प्रकार है - एक निसर्गत दूजी अधिगमतें । निसर्ग कहिये स्वभावतें होय तिसै निसर्ग सम्यक्त्व कहिये । अधिगम कहिये अर्थबोधत होइ तिसै अधिगम सम्यक्त्व कहिये । दोनों प्रकार के सम्यक्त्व विष अन्तरंग कारण दर्शनमोह का उपशम, क्षयोपशम तथा क्षय समान है। बाह्यकारण में दोय भेद है- परम्परा गुरु के उपदेशसौं अर्थावबोध होइ, तिसै अधिगमतें हुआ कहिये । क्षयोपशमादि पाँचों लब्धि की प्राप्ति बिना कदाचित् सम्यक्त्व होइ नाहीं। प्रथम क्षयोपशम-लब्धिसों पंचैन्द्री सैनी पर्याप्त होइ । विशुद्ध-लब्धिसों पुण्यवन्त जोग्य भाव होइ, देशनालब्धिसों जैन गुरु के उपदेशसों अर्थावबोध होइ, प्रायोग्यलब्धिसों आयु बिना सात कर्मनि की मध्यम स्थिति अन्त: कोड़ाकोडी सागर राखै, करपलब्धिसों प्रति समय परिणाम अनंतगुणे निर्मल होइ तब अनादि मिथ्यात्वी अनिवृत्तिकरण के अन्तसमय विषै अनन्तानुबन्धी के चतुष्क और मिथ्यात्व का उपशम करै प्रथम समय, तिसके अनन्तर समयविष सम्यक्त्वकौं पावै । इस प्रकार पंचलब्धि परिणामनि करि जीव कौं सम्यक्त्व की प्राप्ति होइ । आदि चार लब्धि तौ भव्य-अभव्य के समान है। पंचमी करणलब्धि मिलै तब सम्यक्त्व होइ। जिन पंचलब्धिरूप परिणामनि की परणति करि सम्यक्त्व उपजै ते परिणाम इस कलिकाल में महादुर्लभ हैं । यद्यपि सम्यक्त्व अनुमान का विषय नहीं है फिर भी ..... तैसे ही शान्तभाव, संवेगभाव, दयाभाव, आस्तिक्य भाव, इन ... .... 1. चर्चा समाधान, कलकत्ता, भूधरदास, चर्चा नं.2 पृष्ठ 5 2. चर्चा समाधान, कलकत्ता, भूधरदास, चर्चा नं. 3 पृष्ठ 5 3. चर्चा समाधान, कलकत्ता, भूधरदास, चर्चा नं. 3 पृष्ठ 6 45. बची समाधान, कलकत्ता, घरदास, चर्चा नं.4 पृष्ठ 7 6. चर्चा समाधान, कलकत्ता, धरदास, चर्चा नं.16 पृष्ठ 17
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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