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महाकवि पूधरदास : उपादेय, हेय एवं ज्ञेय तत्व :
जैनदर्शन के अनुसार आत्मा का हित सुख है और वह सुख आकुलता के बिना अर्थात् निराकुल अवस्था में होता है। आकुलता मोक्ष में नहीं है।' इसीलिए मोक्ष एवं मोक्षमार्गक उपदेश सम्पूर्ण जिला प रक मात्र तिमाय है। भूधरदास मोक्ष को सब प्रकार से उत्तम मानते हुए मोक्ष के कारणस्वरूप भावों को ग्रहण करने योग्य बतलाते हैं -
“सब विधि उत्तम मोख निवास । आवागमन मिटै जिहिं वास ।। ताते जे शिवकारन भाव । तेई गहन जोग मन लाव॥1 संसार तथा संसार के कारणरूप भाव त्याग करने योग्य हैं - "यह जगवास महादुख रूप । तातै भ्रमत दुखी चिद्रूप । जिन भावन उपजै संसार । ते सब त्याग जोग निरधार ॥"
छह द्रव्य, सात तत्त्व, नौ पदार्थ तथा पंचास्तिकाय जानने योग्य हैं। इनकी सम्यक् जानकारी से सम्पूर्ण सन्देह दूर हो जाते हैं।' विश्व :
इस विश्व में जीव और अजीव अथवा जड़ और चेतन - ये दो ही मूल द्रव्य हैं। यह विश्व पृथक् से और कुछ नहीं है, छह द्रव्यों के समूह को ही विश्व कहते हैं। वे छह द्रव्य हैं - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । जीव को छोड़कर बाकी पाँच द्रव्य अजीव हैं। इस तरह सारा जगत 1. आतम को हित है सुख सो सुख आकुलता बिन कहिये।
आकुलता शिव माहिं न ताते शिवमग लागो चहिये ।। पं. दौलतराम कृत छहढाला, तीसरी ढाल, प्रथम छन्द 2.मागो मगाफलं विय दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवासो तस्स फलं होई णिव्याणं ।। नियमसार, आचार्य कुन्दकुन्द गाथा 2 3. पार्श्वपुराण, कलकत्ता अधिकार 4 पृष्ठ 40 4 दही पृष्ठ 7 5. छहों दरव पंचास्तिकाय । सात तत्त्व नौपद समुदाय ।
जानन जोग जगत में येह। जिनसों जाहिं सकल संदेह ।। 6. जीव अजीव विशेष बिन, मूल दरव ये दोय।' वही पृष्ठ 7 7. द्वादशानुप्रेका- कुन्दकुन्द आचार्य गाथा 39