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________________ - - - एक समालोचनात्मक अध्ययन 331 भूधरदास द्वारा प्रतिपादित दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक विचार (क) दार्शनिक विचार इस विश्व को अपनी-अपनी दृष्टि से देखने के कारण अनेक दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ। जिसके द्वारा देखा जाये वह दर्शन है । दृश धातृ में ल्युट प्रत्यय के योग से “दर्शन" शब्द निष्पन्न हुआ है। दर्शन का अर्थ है "देखना" । देखना दो प्रकार है-स्वयं को देखना तथा पर को देखना । प्रथम आत्मदर्शन है तथा द्वितीय परदर्शन । इस स्व व पर के यथार्थ दर्शन को सम्यग्दर्शन तथा अयथार्थ दर्शन को मिध्यादर्शन कहते है । दर्शन विचारमूलक होता है । अत: हेतुपूर्वक वस्तुस्वरूप की सिद्धि करते हुए यथार्थ का दिग्दर्शन कराना दर्शन का काम है। दार्शनिक विचारों के अन्तर्गत उन सभी सिद्धान्तों का परिज्ञान अपेक्षित है, जिनका मोक्षमार्ग में महत्त्व है अथवा जिनके यथार्थ ज्ञान बिना तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन नहीं होता है । इस दृष्टि से प्राय: प्रत्येक दर्शन ने ईश्वर, जगत, मोक्ष आदि के बारे में विचार किया है तथा अपनी दृष्टि से उन सबका विवेचन किया है। जैन दर्शन में तीर्थकर सर्वज्ञ जिनेन्द्रों की दिव्यध्वनि में आये हुए सभी विचारों का रहस्योद्घाटन गणधरों, आचार्यों तथा इसी परम्परा में आये विद्वानों द्वारा मौखिक तथा तत्पश्चात् लिखित रूप में किया गया । समग्र जैन दार्शनिक विचार प्रथम श्रुतस्कन्ध तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध के रूप में विश्रुत हुए। प्रथम श्रुतस्कन्ध को आगम या सिद्वान्त तथा द्वितीय श्रुतस्कन्ध को परमागम या अध्यात्म कहा जाता है। ____ आगम में मुख्यत: आत्मा का कर्मों तथा द्रव्यों से होने वाले विविध संबंधों का पर्यायदृष्टि परक संयोगी कथन है तथा परमागम में मुख्यरूप से शुद्धात्मस्वरूप या शुद्ध द्रव्यरूप वस्तु का विवेचन है। इन दोनों परम्पराओं में जैनदर्शन ने सर्वत्र अपनी अनेकान्त दृष्टि द्वारा विवेचन किया है जब कि अन्य दर्शनों ने अनेकान्त का आश्रय छोड़कर एकान्त दृष्टि से कथन किया है । आलोच्य कवि भूधरदास ने भी जीव, जगत, कर्म, मोक्ष आदि के विवेचन में पूर्वपरम्परा का निर्वाह करते हुए अनेकान्त दृष्टि को ही सुरक्षित रखा है। ' उनके द्वारा प्रदर्शित दार्शनिक विचार निम्नलिखित है:1. करें तत्त्ववर्णन विस्तार। अनेकान्त वाणी अनुसार ॥ पार्श्वपुराण, कलकत्ता, अधिकार 4 पृष्ठ 40 - . --- - - -
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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