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महाकवि भूधरदास : हटने की सलाह देते हुए वैराग्यप्राप्ति एवं आत्मलीनता की प्रेरणा दी गई है। डॉ. नेमिचन्द शास्त्री ने भूधरदास के पदों को सात भागों में विभाजित किया है उनका कथन इसप्रकार है-"महाकवि भूधरदास की तीसरी रचना पदसंग्रह है। उनके पदों को-1. स्तुतिपरक 2. जीव के अज्ञानवस्था के कारण, परिणाम और विस्तार सूचक 3. आराध्य की शरण के दृढ़ विश्वास सूचक 4. अध्यात्मोपदेशी, 5. संसार और शरीर से विरक्ति उत्पादक 6. नाम स्मरण के महत्त्वद्योतक और 7. मनुष्यत्व के पूर्ण अभिव्यंजक - इन सात वर्गों में विभक्त किया जा सकता
आगे वे इन पदों की विशेषताएँ बतलाते हुए कहते हैं कि "इन सभी प्रकार के पदों में शाब्दिक कोमलता, भावों की मादकता और कल्पनाओं का इन्द्रजाल समन्वित रूप से विद्यमान है । इनके पदों में राग-विराग का गंगा-यमुनी संगम होने पर भी श्रृंगारिता नहीं है । कई पद सूरदास के पदों के समान दृष्टिकूट भी हैं । इसप्रकार भूधरदास के पद जीवन में आस्था, विश्वास की भावना जागृत करते हैं । 2
डॉ. राजकुमार जैन ने भूधरदास के पदों की अनेक विशेषताएँ बतलायी हैं। वे लिखते हैं- “भूधरदास की एक अन्य रचना पदसंग्रह है, जिसमें पद-पद पर अध्यात्म, वैराग्य और शांत रस उच्छलित होता है । इसमें कुल मिलाकर 80 पद हैं और कतिपय स्तुतियाँ भी।
भूधर के पदों में ज्ञान का जो भव्यरूप अंकित हुआ है, वह हिन्दी साहित्य में अद्भुत है। श्रद्धा और विवेक का ऐसा सामंजस्य भी अन्यत्र दुर्लभ है । इन पदों में भावात्मक पृष्ठभूमि, विचारों की सात्त्विकता, आत्मनिष्ठ अनुभूति की गहराई, अभिव्यक्ति की सुघराई, इनकी सरलता, शालीनता तथा सरस गेयता सब भव्य है। इन सब तत्वों का समन्वय ही विचारशील पाठकों के मन में लोकोत्तर आनन्द की सृष्टि करता है।"
विषयगत एवं भावगत समस्त विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए भूधरदास के पदों में वर्णित भावों को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर भी विश्लेषित किया जा सकता है
१. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, डॉ. नेमिचन्द शास्त्री भाग 4 पृष्ठ 276 2 तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, डॉ. नेमिचन्द शास्त्री भाग 4 पृष्ठ 277 3. अध्यात्म पदावली - हॉ. राजकुमार जैन, पृष्ठ 101