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________________ महाकवि भूधरदास ये सभी कवि कबीर, सूर, तुलसी, नीरा आदि बियों के समान ध्यकाल के कवि हैं । 266 मध्यकाल के कवियों में “ पद शैली" प्रिय रही है। इस " पदशैली” का प्रयोग जैन और जैनेत्तर- दोनों कवियों ने किया है। जिसप्रकार हिन्दी साहित्य के · कृष्णभक्त, रामभक्त, सन्तकवि आदि ने पदों के माध्यम से भक्ति, प्रेम, अध्यात्म, विरह आदि के चित्र उपस्थित किए हैं । उसीप्रकार बनारसीदास, द्यानतराय, भूधरदास आदि जैन कवियों ने भी किए हैं। पदों को राग-रागनियों का शीर्षक देकर रखने की प्रथा अर्वाचीन नहीं है। रागबद्ध पदों की दो परम्पराएँ मिलती - एक सरस और दूसरी उपदेशप्रधान । सरस परम्परा में साहित्यिक रस और मानव अनुभूति का बड़ा ही सुन्दर चित्रण हुआ है। इस पद परम्परा में विद्यापति, ब्रज की कृष्णभक्त कवि मीरा आदि प्रधान हैं। दूसरी उपदेश और नीतिप्रधान धारा का प्रारम्भिक स्वरूप साधनापरक बौद्ध सिद्धों के पदों में देखा जा सकता है। कबीर के पदों में साधनापरक स्वर प्रधान होते हुए भी काव्य की झलक मिलती हैं । अन्य सन्तों के पदों में काव्य की मात्रा बहुत ही कम है; किन्तु मध्ययुग के साहित्य में उपदेश और नीति के लिए दोहों का ही प्रधानरूप से प्रयोग हुआ है । जैन पदों में उपदेश, तत्त्वज्ञान, वैराग्य एवं काव्यत्व का समीकरण समाहित है। जैनधर्म, दर्शन, उपदेश और उद्बोधन के अतिरिक्त नामस्मरण का माहात्म्य भी इन पदों में मुखरित है। इन पदों में व्यंजित भाव में सरसता, प्रवणता, मन को अनुरंजित करने वाली कविकल्पना, भक्ति और धार्मिक भावना है । इनके अतिरिक्त हिन्दी भक्ति युग की अन्य समस्त प्रवृत्तियाँ भी जैन हिन्दी पदों में परिलक्षित होती हैं। जीव, जगत और जीवन की सार्थकता इन पदों की मुख्य भावधारा है । इस भावधारा को अपना योग देने और आगे बढ़ाने का श्रेय भूधरदास को भी है । 1 हिन्दी जैन साहित्य के पद रचयिताओं में कवि भूधरदास का महत्वपूर्ण स्थान है। जैन भक्त कवियों की शैली एवं परम्परा का पोषण कवि के पद साहित्य में पूर्ण रूप से हुआ है। ज्ञान, कर्म, भक्ति, आचार-विचार एवं वैराग्य आदि की दृष्टि से कवि का स्थान हिन्दी साहित्य में महत्त्व का रहा हैं । कवि की पदरचना का उद्देश्य भक्ति, वैराग्य, नीति एवं अध्यात्म भाव का अधिक से अधिक प्रचार करना रहा है, इसलिए उन्होंने इन पदों को सरल
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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