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एक समालोचनात्मक अध्ययन
साधारण जनों की यह बात हो सो नहीं। बड़े-बड़े वीर चक्रवर्ती राजा इस संसार में हुए, जिनका आधिपत्य बड़े-बड़े भूभागों पर रहा। जिनके आतंक से 'वसुधा थर-थर काँपती थी। जो कभी मौत के आने पर भी हार मानना स्वीकार नहीं करते थे। उन्हें भी " होनहार" के आगे सिर झुकाना पड़ा
कैसे कैसे बली भप भू पर विख्यात भये, बैरीकुल काँपे नेकु महौं के विकार सौं । लंघे गिरि-सायर दिवायर से दिपैं जिनों, कायर किये हैं भट कोटिन हुँकार सौं । ऐसे महामानी मौत आये हू न हार मानी, क्यों ही उतरें न कभी मान के पहारसौं । देवसौ ने हारे पुनि
दानो सौं न हारे और,
काहू सौं न हारे एक हारे होनहार सौं ।'
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संसार में जिनके पास धन है, वे भी निर्धन होकर दरवाजे दरवाजे भीख
माँगते हुए देखे जाते हैं । फिर भी अज्ञानी लोग धन, ऐश्वर्य आदि पाकर अभिमान करते हैं, धर्म में मन नहीं लगाते हैं
कंचन भंडार भरे मोतिन के पुंज परे, घने लोग द्वार खरे मारग निहारते : जान चढ़ि डोलत हैं झीने सुर बोलत हैं, काहु की हू और नेक नीके ना चितारते ॥ कौलौं धन खांगे कोठ कहे यौन लागे तेई फिरैं पाँच नांगे एते पै अयाने गरबाने रहें विभौ पाय, धिक है समझ ऐसी धर्म ना सँभारते ॥
कांगे पर पर झारते ।
1. जैनशतक छन्द 72 2. जैनशतक छन्द 34