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महाकवि भूधरदास:
मुक्तक और प्रबन्ध में भेद मुक्तक काव्य और प्रबन्ध में काफी अन्तर है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल इस अन्तर को निम्नलिखित शब्दों में अभिव्यक्त करते हैं -
"मुक्तक में प्रबन्ध के समान रस की धारा नहीं रहती जिसमें कथा प्रसंग की परिस्थिति में भूला हुआ पाठक निमग्न हो जाता है और हृदय में एक स्थायी प्रभाव ग्रहण करता है। इसमें तो रस के ऐसे छोटे पड़ते हैं, जिससे हृदय कलिका थोड़ी देर के लिए पिखल उठती है। यदि एजन्म काव्य विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है । उसमें उत्तरोत्तर अनेक दृश्यों द्वारा संघटित पूर्ण जीवन या उसके किसी अंग का प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि कोई एक रमणीय खण्ड, दृश्य सहसा सामने ला दिया जाता है।'
श्री जितेन्द्रनाथ पाठक के अनुसार-"प्रबन्ध कवि की किसी महती इच्छा, इतिवृत्तविधायिनी बुद्धि और शिल्प चेतना का परिणाम है, किन्तु मुक्तक कवि की सद्यःस्फुरत भावुकता समास-चेतना और भावविधायिनी प्रतिभा की अभिव्यक्ति है।
बाह्यरूप और अंतरवर्ती चेतना की इसी भिन्नता के कारण संभवतः मुक्तकों का निर्माण और उसका ग्रहण काफी वेग से हुआ और प्रबन्धों का निर्माण काफी धीरे-धीरे । संभवत: इसी कारण मुक्तकों का संख्यातीत विशाल साहित्य सामने आया और प्रबन्धों का ऐसा साहित्य जो सरलतापूर्वक गिना जा सके।
कवि भूधरदास ने एक ओर जहाँ पार्श्वपुराण नामक प्रबन्ध काव्य की रचना की, वहाँ दूसरी ओर जैनशतक, पदसंग्रह आदि मुक्तक काव्य की रचना भी की । वे दोनों ही प्रकार के काव्यों की विशेषताओं को एक साथ लिये हुए हैं । प्रबन्ध काव्य की विशेषताओं का विवेचन किया जा चुका है । मुक्तक काव्य की विशेषताओं का विवेचन क्रम-प्राप्त है। मुक्तक काव्य में जैनशतक की भावपक्षीय विशेषताओं का वर्णन इसप्रकार है
1. हिन्दी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, पृष्ठ 265 2. हिन्दी मुक्तक काव्य का विकास, जितेन्द्रनाथ पाठक, पृष्ठ 1