________________
194
महाकवि भूधरदास :
कहि सिकताथल कहि शुद्ध भूमि, कहि कपि तरूखारन रहे झूमि। कहिं सजलथान कहिं गिरि उतंग, कहिं रीछ रोझ विछरें कुरंग॥'
यह वन का स्वाभाविक वर्णन है, जिसकी योजना परिस्थिति निर्माण के लिए की गई है। यहाँ कवि ने प्राकृतिक वैश्य को भलीभांति सजाने की चेष्टा की है।
___ कवि की वर्णनक्षमता अद्भुत है । वस्तु वर्णनों को दृश्यरूपों में सामने रखने में वह बड़ा सफल हुआ है। प्राय: दृश्य प्रसंगों और परिस्थितियों के अनुकूल एवं स्थान व कालगत विशेषताओं से युक्त हैं। उदाहरण के लिए भूताचल पर्वत पर अनेक तपस्वियों द्वारा विभिन्न तपों के रूप में की जाने वाली चेष्टाओं को लिया जा सकता है -
केई रहे अधोमुख झूल। धूवा पान करै अधमूल ।। केई ऊर्धमुखी अघोर। देखे सर्व गगन की ओर ।। केई निबसैं ऊरथबाहि । दुविध दयासों परचै नाहि ॥ केई पंच अग्नि झल सहैं। केई सदा मौन मुख रहैं। केई बैठे भस्म चढाय । केई मृगछाला तन लाय।। नख बढ़ाय केई दुख भरें । केई जटा भार सिर घरै ।।
यों अज्ञान तपलीन मलीन । करें खेद परमारथहीन ।।' इस प्रकार कथानक अनेक विशेषताओं से मुक्त होकर प्रभावपूर्ण बन पड़ा है।
5. महानता एवं पुराणसम्मतता - "पार्श्वपुराण" के नायक “पार्श्वनाथ" जैनियों के तेईसवें तीर्थकर माने जाते हैं। वे एक महान व्यक्तित्व को लिये हुए हैं। उनके महान् व्यक्तित्व को निरूपित करने वाला होने से “पार्श्वपुराण" का कथानक महान बन पड़ा है।
कवि ने एक ऐसे युगपुरुष को अपने काव्य का नायक बनाया है, जो जीवन की अनेक विषम परिस्थितियों में सुगमता से गुजरकर एक आदर्शभूमि पर खड़ा हो जाता है। यह आदर्श उस युग के लिये भी आदर्श की प्रेरणा देता 1. पार्श्वपुराण - कलकत्ता, अधिकार 2 पृष्ठ 9 2. पावपुराण - कलकत्ता, अधिकार 5 पृष्ठ 49 3. पावपुराण - कलकत्ता, अधिकार 1 पृष्ठ 7