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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन है। वे मरूभूति के क्षमा करने के प्रस्ताव को ठुकराते हुये कमठ का सिर मुण्डाकर, काला मुँह करके, गधे पर बिठा कर देश निकाला दे देते है। कमठ भूताचल पर्वत पर हाथ में शिला लेकर तप करने लग जाता है। जब मरूभूति उसके समाचार लेने तथा क्षमा मांगने वहाँ जाता है तब वह शिला पटककर उसकी हत्या कर देता है । हत्या उपरान्त तापसियों द्वारा निकाल दिये जाने पर वह अनेक दुष्कर्म करता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है । मरूभूति के वापिस न आने पर राजा अवधिज्ञानी मुनि से मरूभूति के मरण का सर्व वृत्तान्त जानकर उनके उपदेश द्वारा खेद त्यागकर समता भाव धारण करते हैं। द्वितीय अधिकार :- मरूभूति मरकर सल्लकी वन में “वघोष" नामक हाथी होता है । राजा अरविन्द मुनि बनकर उसी वन में स्थित होते हैं । “वघोष" उन्हें देखकर क्रोधित हो जाता है, परन्तु उनके सम्मुख आने पर जातिस्मरण ज्ञान द्वारा शान्त हो जाता है । मुनिराज के सम्बोधन से वह सम्यग्दर्शनपूर्वक व्रत अंगीकार कर लेता है। कमठ मरकर काला सर्प बनता है तथा हाथी को डस लेता है। हाथी मरकर बारहवें स्वर्ग में देव होता है। देवायु समाप्त कर वह राजा विद्युत्गति की रानी विद्युत्माला के गर्भ से अग्निवेग नामक पुत्र होता है । वह यौवनावस्था में एक मुनिराज के उपदेश से दीक्षा लेकर तप करने लगता है। काला सर्प भरकर पाँचवें नरक में नारकी होकर आयु पूर्ण कर अजगर होता है। अजगर मुनि को खा लेता है । मुनिराज समता पूर्वक देह त्याग सोलहवें स्वर्ग में देव बन जाते हैं। तृतीय अधिकार :- देवायु पूर्ण कर वे वब्रवीर्य राजा तथा विजयारानी के यहाँ "कजनाथि” नाम के पुत्र होते हैं। चक्रवर्ती बनकर धर्मपूर्वक राज्य करते हुए क्षेमंकर मुनि के उपदेश से विरक्त होकर जिनदीक्षा ले लेते हैं अजगर मरकर पुन: छठवें नरक का नारकी होकर भील बनता है। भील पूर्व जन्म के वैर से वज्रनाभि मुनिराज को वाणों से मार देता है। मुनिराज समता पूर्वक देह त्याग मध्यम अवेयक में अहमिन्द्र होते हैं। भील मुनि हत्या के पाप से पुन: नारकी होता है।
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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