________________
एक समालोचनात्मक अध्ययन
171 लेने जाना, मण्डप का अनेक प्रकार से सजाया जाना, विवाह की वेदी पर बैठे वर-वधू को लक्ष्य कर स्त्रियों के द्वारा मांगलिक गीत गाना, कन्या को उसकी माँ द्वारा सम्बोधन देना तथा वर को उसके श्वसुर द्वारा आशीर्वाद देना आदि सभी विवाह सम्बन्धी प्रमुख बातों का वर्णन है। सम्पूर्ण कृति में अमिधामूलक बोध शैली का व्यवहार हुआ है । वास्तव में कवि की यह लघु कृति लोकाचार और लोक व्यवहार की अनूठी कृति बन पड़ी है।
9. ढाल :- कवि द्वारा रचित "नोकार महातम की ढाल" तथा "सप्त व्यसन निषेध ढाल" - ये दो दालें उपलब्ध हैं। पहली “नोकार महातम की ढाल" जैन पद संग्रह में भी प्रकाशित हो गई है। दूसरी “सप्त व्यसन निषेध ढाल” “पार्श्वपुराण" के अन्तर्गत ही लिखी गई है, परन्तु कहीं-कहीं इसका प्रथक प्रकाशनी देखने में आया है। ये दोनों डालें सकामत और अप्रकाशित दोनों रूपों में उपलब्ध हैं। I “नोकार महातम की ढाल" नामक 'रचना में 35 अक्षरों से संगठित अति प्रसिद्ध णमोकार मंत्र का माहात्म्य अभिव्यंजित हुआ है। इस रचना में पद्यरुचि, सुग्रीव, सुलोचना गंगादेवी, चारुदत्त, धरणेन्द्र-पद्मावती, सीता, चोर और सेठ, सेठ सुदर्शन, अंजन चोर तथा जीवक चोर सम्बन्धी 11 अन्तर्कथाओं का नामोल्लेख हुआ है तथा णमोकार मंत्र के माहात्म्य से इन सबने उत्तम फल प्राप्त किया है। यह कृति जन समुदाय को इस मंत्र की महत्ता से परिचित कराती हई उसे निरन्तर बैठे, चलते, सोते, जागते आदि सर्वदा जपने की प्रेरणा देती है। इस मंत्र की प्रभावना जन जीवन के क्रिया-कलापों को अहर्निशि प्रभावित करती है। यह अपराजित मंत्र सर्वविघ्नों का नाश करने वाला तथा सर्वमंगलों में पहला मंगल है। यह मंत्र जिनगम का सार है, इसलिए आज भी इसकी मान्यता सम्पूर्ण समाज में है । “सप्त व्यसन निषेध ढाल" में द्यूतक्रीड़ा, मांस-भक्षण, मद्य-पान, वेश्यासेवन, शिकार, चोरी और परस्त्रीरमण - इन सात व्यसनों का निषेध उल्लिखित है। इन सप्तव्यसनों के त्याग से ही व्यक्ति की चारित्रिक उत्कृष्टता सम्भव है । व्यक्ति के चरित्र का उत्थान हुये बिना लौकिक और धार्मिक जीवन सुन्दर नहीं हो सकता। कवि ने महाभारतकालीन पाण्डवों का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सप्तव्यसन के निषेध को प्रतिपादित किया है और अपने लक्ष्य में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है। 1. (क) प्रकाशित - जैन पद संग्रह एवं पार्श्वपुराण के अन्तर्गत (ख) अप्रकाशित राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शाखा बीकानेर
के गुटका सं.6766 पत्र संख्या 50