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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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3. अब पूरी नीदड़ी सुन जोया रे, चिरकाल तू सोया। 4. तुम जिनवर का गुण गावो, यह औसर फेर न पावो।' ६, सामायिक पूला नहिं कीनी, रैन रही सब छाय रे।' 6. डरते रहै यह जिंदगी, बरबाद न हो जाय।' 7. अहो दोऊ रंग भरे खेलत होरी, अलख अमूरति की जोरी। 8. पानी में मीन प्यासी रे, मोहे रह-रह आवै हासी रे।' 9. होली खेलूंगी घर आये चिंदानन्द।' ।
उपर्युक्त पहली पंक्ति वाले 9 पद विभिन्न संग्रहों में प्रकाशित हो चुके हैं। इस तरह पद संग्रह में प्रकाशित 80 पद और विभिन्न संग्रहों में प्रकाशित उपर्युक्त 9 पद मिलाकर कुल 89 प्रकाशित पद प्राप्त हुए हैं।
जो पद प्रकाशित न होकर विभिन्न शास्त्र भण्डारों में हस्तलिखित गुटकों में अप्रकाशित रूप में उपलब्ध हुए हैं, उनका विवरण निम्नालिखित है
1. मौहयौ मोह यौरी पास जिणंद मुख भटकै।' 2. अब पूरी करि नीदड़ी सुनि जिय डेची सोया।'
देखने को आई लाल मैं तो देखने को आई।" 4. सखी री चलि जिनवर को मुख देखिये।"
संभल-संभल रे जीव सतगुरु के सबद सुहावने जी।"
ज्ञान धनायन आयौरी। 1. कर्म बड़ौजी बलवान जगत में पीड़ित है।"
1 से 4 अध्यात्म पद संग्रह - से न.परसराम इन्दौर, पृष्ठ 72 से 82 5. से 7. अध्यात्म भजन गंगा - संकलनकर्ता पं. ज्ञानचन्द जैन, पृष्ठ 72 8. राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शाखा बीकानेर के खजांची संग्रह के __अन्तर्गत गुटका सै.6794 में संग्रहीत 9. से 12. राजस्थानी प्राच्य विधा प्रतिष्ठान,शाखा बीकानेर के गुटका सं.6766 में संग्रहीत 13. आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर, गुटका सं.6766 में संग्रहीत 14. ऋषभदेव, सरस्वति सदन, उदयपुर के गुटका सं. 720 में संग्रहीत