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महाकवि भूधरदास :
आदि की भक्ति से सम्बन्धित है। अनेक पद आध्यात्मिक भावों के भी योतक हैं। एक पद संग्रह जयपुर के पं. लूणकरणजी के मन्दिर में गुटका नं. 129 तथा वेष्टन नं. 333 में निबद्ध है।
जैन ग्रन्थ रत्नाकर बम्बई द्वारा प्रकाशित “जैन पद संग्रह" में जो 80 पद हैं, उनमें से 53 पद ज्यों के त्यों "भूधरविलास" नाम से जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता द्वारा प्रकाशित किये गये हैं। अत: “पदसंग्रह" और "भूधरविलास" ये दोनों पृथक्-पृथक् रचनाएँ नहीं हैं अपितु पदों का संग्रह होने से एक ही रचना है। प्रकाशकों ने कवि के विभिन्न पद ही उन दो नामों से प्रकाशित कर दिये हैं, जिन्हें विद्वानों ने दो पृथक्-पृथक् रचनाएँ मान ली हैं। वस्तुत: ये होने वनाएँ भूधपताल के ग्वान्न पदों का संह ही हैं। फर्क यह है कि "भूधरविलास” में 53 पद संग्रहीत हैं, जबकि “जैन पद संग्रह" में उनमें ही 27 पद और जोड़कर या पद संग्रहीत हैं। इस तरह “भूधरविलास और "पदसंग्रह" इन दोनों को एक ही रचना मानकर कवि के पदों का संग्रह समझना चाहिए।
विभिन्न विद्वानों ने भूधरदास के पदों की संख्या पृथक् पृथक् मानी है। पं. ज्ञानचन्द विदिशा,' डॉ. ब्रजेन्द्रपालसिंह चौहान, ' तथा डॉ कस्तूरचन्द कासलीवाल ने कवि के क्रमश: 68,77 और 68 पद माने हैं। जबकि कवि के 8) पदों का संग्रह वि.सं. 1983 में ही जैन ग्रन्थ रत्नाकर बम्बई द्वारा “जैन पद संग्रह" तृतीय भाग के नाम से प्रकाशित हो चुका है। इस पद संग्रह में प्रकाशित 80 पदों के अतिरिक्त अन्य बहुत से पद भी यत्र तत्र संग्रहों में उपलब्ध हुए हैं, जिनका विवरण निम्नानुसार हैं
1. गाफिल हुआ कहाँ तू डोलै दिन जाते तेरे भरती में।'
2. लीजै खबार हमारी दयानिधि। 1. अध्यात्म पजन गंगा - संकलन कर्ता पं. ज्ञानचन्द जैन पृष्ठ 72 2. कविवर महाकवि भूषरदास : व्यक्तित्व और कर्तृत्व - श्री राजेन्द्रपालसिंह चौहान 3. हिन्दी पद संग्रह - सं. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृष्ठ 143 4. वही पृष्ठ 151 5. जैन भजन संमह भाग 1, ग्रन्थ सं 1864, ऋषभदेव सरस्वती सदन, उदयपुर