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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 159 संवत् सतरह सौ समय, और नवासी लीय। सुदि आषाढ़ तिथि पंचमी, प्रन्थ समाफ्त कीन ।' इस काव्य के सृजन में कवि को पाँच वर्ष लगे, जैसा कि कवि के निम्नांकित कथन से प्रकट होता है -- पाँच बरस कछु सरस से, लागे करत न बैर। बुधि थोरी थिरता अलए याते लगी अबैर ।। । जैन शतक(मुक्तक काव्य):- यह 100 से अधिक पद्यों का स्तुति, नीति एवं वैराग्य को प्रदर्शित करने वाला मुक्तक काव्य है । संख्यापरक कृतियों में उसमें आने वाली निश्चित संख्या से कुछ अधिक संख्या में पद्यों को रचने का प्रचलन रहा है। जैसे - बिहारी सतसई आदि । कवि भूधरदास ने भी जैन शतक में 100 से अधिक पद्य रने हैं। जैन पाहम की अई दिन परियाँ देखने में आई हैं, उसमें जैनग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई, जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्ता, वीर सेवा मन्दिर दिल्ली, दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत, दिगम्बर जैन मुमुक्षु मण्डल अलवर, अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन भिण्ड द्वारा प्रकाशित जैन शतक में क्रमश: 107,106,100,106,100,107 पद्य हैं । कुछ हस्तलिखित प्रतियों में भी पद्यसंख्या 107 ही है । पं. नेमिचन्द्र शास्त्री 'स्व बाबू शिखरचन्द्र जैन' एवं डॉ. कामताप्रसार जैन ने भी इसकी पद संख्या 17 ही स्वीकार की है। अत: कविकृत “जैनशतक” की पदसंख्या 107 ही मानना चाहिए। ___107 पदों वाली यह कृति स्तुति, नीति एवं वैराग्यपरक है। प्रत्येक पद पृथक्-पृथक् विषय को लिए हुए हैं। इसतरह प्रत्येक छन्द स्वयं में स्वतंत्र एवं पूर्ण है तथा उसे किसी दूसरे पूर्वापर छन्द की अपेक्षा नहीं है। 1, गावपुराण अन्तिम प्रशस्ति 2. पार्श्वपुराण अन्तिम प्रशस्ति 3. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भाग 4 - डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री पृष्ठ 275 4. कविवर पूधरदास और जैन शतक - बाबू शिखरचन्द जैन पृष्ठ 8 प्रकाशक - श्री वीर सार्वजनिक वाचनालय, इन्दौर 5. हिन्दी साहित्य का इतिहास - बाबू कामताप्रसाद जैन पृष्ठ 174
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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