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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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उपर्युक्त सभी कथनों से स्पष्ट है कि भूधरदास, कुन्दकुन्द, अमृतचन्द, उमास्वामी, नेमीचन्द, पूज्यपाद, समन्तभद्र आदि सभी प्रमुख जैनाचार्यों से प्रभावित थे वे जगह-जगह जिनागम को प्रमाण मानने एवं जिनागम के अनुसार वर्णन करने का उल्लेख करते हैं, इसलिए उनकी दृष्टि में जिनागम सर्वोपरि है। उनके द्वारा “चर्चा समाधान” नामक ग्रन्थ में अनेक जैन ग्रन्थों के नाम, प्रमाण एवं उद्धरण दिये गये हैं। उन्हें देखकर लगता है कि भूधरदास ने तत्समय उपलब्ध लगभग सभी जैन शास्त्रों का पारायण किया था और वे इन सबसे प्रभावित भी हुए थे। इसीलिए उन्होंने उन सबका उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है।
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि भूधरदास जिनदेव, जिनशास्त्र, जिनगुरु एवं जिनधर्म से प्रभावित थे और इन सबसे प्रभावित होकर ही उन्होंने जिनागम की आम्नाय अनुसार समस्त रचनाएँ की हैं।
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सीमंधर स्वामी ..... सीमंधर स्वामी मैं चरनन का चेरा ॥ टेक ॥ इस संसार असार में, कोई और न रक्षक मेरा ॥
"सीमंधर स्वामी. " लख चौरासी योनि में, फिर फिर कीना फेरा। तुम महिमा जानी नहीं प्रभु, देख्या दुःख पनेरा।
॥ सीमंधर स्वामी ॥ भाग उदय है पाइया अब, कीजे नाथ निवेरा। वेगि दया कर दीजिये मुझे, अविचल थान बसेरा ।
॥ सीमंधर स्वामी ॥ नाम लियो अघ न रह ज्यों, ऊगे भानु अंधेरा। 'भूधर' चिन्ता क्या रही ऐसा, समरथ साहब मेरा ।
। सीमंधर स्वामी ॥
- भूधरदास