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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 131 की रचना करने वाले कवियों की तीव्र आलोचना करते हैं। इसी तरह वे समाज में व्याप्त ईर्ष्या, द्वेष, छल, प्रपंच हिंसा आदि को छोड़ने एवं प्रेम, सरलता, अहिंसा आदि को अपनाने पर बल देते हैं। कवि भूधरदास का जीवन धार्मिक नैतिक एवं सदाचारयुक्त था। वे आत्महित के प्रति सतत् जागरूक थे। उनमें आध्यात्मिक चेतना अति उन्नत थी। अपनी आध्यात्मिक समुन्नत चेतना को उन्होंने अपनी रचनाओं में सर्वत्र स्थान दिया है । इन्हीं रचनाओं के माध्यम से उनके मानसिक जगत और उनकी मनोवैज्ञानिक स्थिति का यत्किचित् आभास होता है। कवि के उपरि वर्णित शाक्तित्व के निर्णय में पारागत शामिदः संस्कार तो कारण है ही, साथ ही कवि की अन्तः प्रेरणा एवं मित्रों की बाह्यप्रेरणा भी बहुत सहायक हुई है। कवि ने अपने मित्रों की सहायता एवं सलाह को हृदय से स्वीकार करते हुए उनकी बारम्बार प्रेरणा से अपने आलस्य का अन्त माना फिरि - फिरि प्रेरे मेरे आलस का अन्त भयो, उनकी सहाय यह मेरौ मन माने है।' प्रत्येक व्यक्ति परिवार, समाज, देश, काल, वातावरण तथा दूसरे कई व्यक्तियों से कुछ न कुछ प्रभाव ग्रहण करता है, भूधरदास ने भी किया है - 1. अमृतचन्द्र मुनिराज कृत, किमपि अर्थ अवधार। जीव तत्त्व वर्णन लिख्यो, अब अजीव अधिकार ॥' पूज्यपाद मुनिराय, श्री सरवारथ सिद्धि में। कह्यो कश्चन इहि भाय, देख लीजियों सुबुधिजन।' 3. पूरब गाथा को अरथ, लिख्यौ चौपाई लाय। षटपाहुइ टीका विषै, देख लेउ इहि माय ।। ' इहि विधि जो कोई पुरुष, पूछ संशय राशि। ताकि समुझावन निमित्त लिखू जिनागम साखि॥' 3. पावपुराण पृष्ठ 36 1.जेनशतक, पद्य 105 4. पार्श्वपुराण पृष्ठ 45 2. पार्श्वपुराण पृष्ठ 82 5. पार्श्वपुराण पृष्ठ 68
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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