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________________ 130 महाकवि भूधरदास : द्वेष भाव सम जगत में, दुख कारण नहि कोय। मैत्री भाव समान सुख और न दीसै लोय ।। मैत्री भाव पीयूष रस, बैरभाव विषपान। अमृत होत विष खाइये, किस गुरु का यह ज्ञान ।' आदि अन्त में विरस है बैर भाव दुःखरूप । आदि मधुर आगे मथुर, मैत्री भाव अनूप ।। जीव जाति जावंत, सबसों मैत्री भाव करि। याको यह सिद्धांत , बैर विरोध न कीजिये॥' इस प्रकार भूधरदास का बाह्य व्यक्तित्व अर्थात् शारीरिक संगठन अज्ञात है, परन्तु उनकी रचनाओं द्वारा उनके आन्तरिक व्यक्तित्व अर्थात् मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान भलीभाँति हो जाता है। उनके आन्तरिक व्यक्तित्व को समझने के लिए उनकी कृतियों में आई हुई उपर्युक्त वे सभी पंक्तियाँ सहायक हैं; जिनमें उनके मनोभावों एवं विचारों की झलक मिलती है। कवि भूधरदास की रचनाओं के अवलोकन से ज्ञात होता है कि कवि महान विद्वान, प्रवचनकार, समाधानकर्ता, भक्त, गणानुरागी, अध्यात्मरसिक, निरभिमानी, विनम, मिष्टभाषी, पक्षपातविरोधी, खोजी, जिज्ञासु, विचारशील, धैर्यवान, भाग्यवादी, धार्मिक, नैतिक, सदाचारी, विरक्त एवं आत्मोन्मुखी वृत्तिवाला महा पुरुष है । उसके व्यक्तित्व में अनेक गुण परिलक्षित होते हैं। वे समस्त गुण उसको सामान्य व्यक्तित्व से उठाकर असामान्य महापुरुष के पद पर प्रतिष्ठित करते हैं। महान व्यक्तित्व को लिए हुए महाकवि भूधरदास जहाँ एक ओर धार्मिक और नैतिक आदर्शों की बात करते हैं ; वहां दूसरी और सामाजिक बुराइयों और दुर्बलताओं पर भी करारी चोट करते हैं। वे तत्कालीन समाज में व्याप्त द्यूतक्रीड़ा (जुआ) मांस भक्षण, मद्यपान, वेश्यागमन, परस्त्रीसेवन, चौर्यवृत्ति, आखेट (शिकार) एवं पशु बलि आदि के दोष निरूपित करते हैं तथा रीतिकालीन कवियों द्वारा दी गई नारी के अंग प्रत्यंगों की उपमाओं की एवं श्रृंगारपरक काव्य 1. चर्चा समाधान, भूधरदास, अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 122-123 2. पार्श्वपुराण, भूधरदास, अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 96 3. चर्चा समाधान, भूधरदास, पृष्ठ 1
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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