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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 123 काहे को बोलत बोल बुरे नर । नाहक क्यों जस धर्म गमावै। कोमल वैन चवै किन ऐन. लगै कछु है न सबै पन भावै ।। तालु छिदै रसना न भिदै, न घटे कछु अंक दरिद्र न आवे । जीभ कहैं जिय हानि नहीं तुझ जी सब जीवन को सुख पावै ॥1 पक्षपात विरोधी :- भूधरदास किसी भी कथन को सर्वथा स्वीकार न कर कथंचिद् (किसी अपेक्षा) स्वीकार करते हैं तथा वचन का पक्ष करने में अनेक दोष दिखलाते हुए उसके छोड़ने की प्रेरणा देते हैं - वचन पक्ष में गुण नहीं, नहि जिनमत को न्याय। ऐंच खेंच सौ प्रीति की, डोर टूट मत जाई।। ऐंच खेंच सों बहुत गुन, टूटत लगे न बार। 'ऐंच खेंच बिन एक गुन, नहि टूटे निरधार ।। वचन पक्ष परवत कियो, भयो कौन कल्यान । बसु भूपति हू पक्षकार, पहुचौ नरक निदान ।। वचन पक्ष करिवो बुरो, जहां धर्म की हान। निज अकाज पर को बुरो, जरो जरो यह बान ।। खोजी एवं जिज्ञासु :- भूधरदास ज्ञान के क्षेत्र को अनंत मानते हैं। इसलिए प्राप्त ज्ञान में संतुष्ट न रहने एवं निरन्तर खोजी होने की प्रेरणा देते हुए खोज करने वाले के अनेक गुण बतलाते हैं :-- खोज किये गुण होई विशेष वाद किये गुन को नहि लेश। पूछतता नर पंडित होइ, जागतड़ा नर मुसै न कोई ।। याही में सब कोइ ग्वालबाल भी कहत है। खोजी जीवे जो वादी को जीवन विफल ॥" इसी तरह वे जानकार होने पर भी और अधिक जानने की इच्छा रखने एवं उसके लिए प्रयत्न करते रहने का उपदेश देते हैं - जो तुम नीकै लीनों जान, तामै भी है बहुत विजान। ताः सदा उद्यमी रहो, ज्ञान गुमान भूलि जिन गो॥ विचारशील :- भूधरदास एक विचारशील मनुष्य थे। वे योग्य और 1. जैन शतक, भूधरदास, पद्य 70 2. चर्चा समाधान, भूधरदास, पृष्ठ 3 3. वही पृष्ठ 3 4. वही पृष्ठ 3
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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