SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 122 महाकवि भूषरदास : कवि भूधरदास इस नाशवान और क्षणभंगुर संसार के वैभव को पाकर अभिमान करने वालों को धिक्कारते हुये मान के त्यागने का उपदेश देते हैं - जपकर तपकर दानकर, कर कर पर उपकार । जैन धर्म को पाय कर, मान कषाय निवार ॥ विनम्र :- भूधरदास विनम्र स्वभाववाले महा मानव थे। विनम्रता उनमें कूट-कूट कर भरी थी; इसीलिए वे अपने आराध्य के प्रति तो विनमता प्रदर्शित करते हुये स्तुति करते ही हैं, अपितु सभी पूज्य पदों, जैनाचार्यों एवं विद्वानों आदि के प्रति अहंकार छोड़कर विनम्रता प्रदर्शित करते हैं - "जैन तत्त्व के जाननहार। भये जथारथ कथक उदार ॥ तिनके चरनकमल कर जोरि। करो प्रणाम मानमद छोरि ।' कवि भूघरदास प्रकाण्ड विद्वान एवं व्याकरण के पाठी होकर के भी अपनी विनम्रता इस प्रकार प्रकट करते है और बुद्धिमानों से क्षमा करने, भूल सुधारने की प्रार्थना करते हैं - अमरकोष नहिं पढ़यो, मैं न कहि पिंगल पेख्यो। काव्य कंठ नहिं करी, सारसुतसो नहि सीख्यौ ।। अच्छर संधि समास, ज्ञानवर्जित विधि हीनी। धर्मभावना हेतु, किमपि भाषा यह कीनी ।। जो अर्थ छन्द अनमिल कहो, सो बुध फेर संवारियो। सामान्य बुद्धि कवि की निरखि, छिमाभाव उर धारियो ।' इस प्रकार भूधरदासजी ने अपने साहित्य में सर्वत्र विनमता प्रदर्शित की मिष्टभाषी :- भूधरदास विनम्र होने के साथ-साथ मिष्ट भाषी भी थे; इसीलिए वे कठोर बोलने वालों को समझाते हुये कहते हैं कि - 1. जैन शतक, भूधरदास, पद्य 34 2. चर्चा समाधान, पूधरदास, पृष्ठ 2 3. पार्श्वपुराण, भूधरदास, पृष्ठ 2 4. पार्श्वपुराण, भूधरदास, अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 96
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy