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एक समालोचनात्मक अध्ययन
119 संभवत: अधिक लम्बा नहीं रहा। उन्होंने अपने जीवन के 15-20 वर्ष ही साहित्य सेवा व लेखन में लगाये। 1
इसी प्रकार भूधरदास पर सर्वप्रथम शोधकार्य करने वाले शोधार्थी श्री बजेन्द्रपालसिंह चौहान भूधरदास का काव्यसृजन-काल मात्र 10 वर्ष ही मानते हैं। उनका कथन है . "कवि के जन्मदिन - दिन मा दीप का विवरण आदि का स्पष्ट उल्लेख न तो स्वयं कवि द्वारा ही कहीं हुआ और ना ही बहिक्ष्यि ही इस विषय में किसी प्रकार की सूचना देता है । कविकृत रचनाओं का आलोड़न करने से यह अवश्य ही विदित होता है कि कविका काव्यसृजन-काल निश्चय ही एक दशाब्दी रहा है। क्योंकि कवि की प्रथम रचना जैनशतक संवत् 1781 में रची गई और इसके उपरान्त पार्श्वपुराण नामक कृति को कवि ने अपने पंचवर्षीय अथक परिश्रम से रचा और पार्श्वपुराण नामक महाकाव्य संवत् 1789 में समाप्त हुआ।
उपुर्यक्त दोनों कथनों पर विचार करने पर यह प्रतीत होता है कि विद्वतद्वय ने भूधरदास की समस्त रचनाओं का अवलोकन नहीं किया तथा उन पर उल्लिखित रचनाकालों पर दृष्टिपात नहीं किया। यदि सभी रचनाओं एवं उनके रचनाकालों को दृष्टिपथ में लाया जाता तो उपर्युक्त मन्तव्य स्थिर नहीं हो पाते, क्योंकि भूघरदास की सर्वप्रथम कृति जैनशतक वि. सं. 1781, द्वितीय पार्श्वपुराण वि.सं. 1789 और तृतीय गद्यकृति “चर्चा समाधान" विसं. 1806 की रचना है। वि. सं. 1781 से 1806 तक का कल समय 25 वर्ष स्वत: सिद्ध होता है ।अतः उनका साहित्यिक जीवन या रचनाकाल 10 वर्ष या 15-20 वर्ष किसी भी प्रकार नहीं माना जा सकता है। समयांकित रचनाओं के आधार पर भूघरदास का साहित्यिक काल 25 वर्ष है। परन्तु अन्य फुटकर रचनाएँ जिन पर समय अंकित नहीं है, इस समय सीमा का उल्लंघन भी कर सकती है और भधरदास के साहित्यिक जीवन को वृद्धिंगत भी कर सकती हैं।
1. दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व और कृतित्व- डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल प्रस्तावना
पृष्ठ 11 2 कविवर भूधरदास की केवल दो ही रचनाएं 'जैनशतक' और 'पार्श्वपुराण' समयांकितहै । जिनमें ग्रन्थ समाप्ति के अवलोकन से निश्चित किया जा सकता है कि संवत् 1781 से संवत् 1789 तक अर्थात् एक दशाब्दि ही कविवर का साहित्य सृजनकाल रहा । शोध ग्रन्य कविवर (महाकवि) भूषरदास : व्यक्तित्व और कर्तृत्व रजेन्द्रपालसिंह चौहान द्वितीय अध्याय पृष्ठ 34-35, आगरा विश्वविद्यालय सन् 1978 3. वही पृष्ठ 34-35