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महाकवि भूघरदास :
दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर तेरापंथियान जयपुर में प्राप्त भूधरदास द्वारा लिखित “चर्चा समाधान" की एक हस्तलिखित प्रति वि. सं. 1815 में लिखी गई, जिसमें पं. टोडरमलजी द्वारा गोमट्टसार आदि ग्रन्थों की 60 हजार श्लोक प्रमाण टीका लिखे जाने और भूधरदास के “चर्चा समाधान" ग्रंथ की प्रामाणिकता के बारे में उल्लेख किया गया है । 'उस उल्लेख में टोडरमलजी और भूधरदासजी इन दोनों के वर्तमान होने का स्पष्ट संकेत है - “सु भूधरमल्लजी बीच टोडरमलजी विशेष ग्याता है।" अत: भूधरदास का अन्तिम समय वि. सं. 1815 तो आसानी से माना जा सकता है । परन्तु वास्तव में उनका अवसान काल 1815 मानना भी ठीक नहीं है; क्योंकि ब्र. रायमलजी ने “जीवनपत्रिका" एवं “इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका" माघ कृष्णा 9 त्रि. सं. 1821 में लिखी थी, जिसमें आगरा नगर एवं भूधरदास का उल्लेख किया था। इन्द्रध्वज विधान महोत्सव जयपुर नगर में फाल्गुन कृष्णा 4 वि सं. 1821 तक सम्पन्न हुआ था। * सम्भवत: भूधरदास इस महोत्सव में सामिल हुए हो और यदि न भी हो सके हो, तो भी उनका अस्तित्व ब. रायमल से मिलने के समय वि. सं. 1812 से कुछ समय पूर्व से लेकर 10-11 वर्ष पश्चात् वि. सं. 1822-23 तक मानना असंगत प्रतीत नहीं होता है। अत: भूधरदास का अन्तिम समय वि. सं. 1826 न मानकर वि. सं. 1822-23 माना जाना चाहिए और यही युक्तिसंगत भी प्रतीत होता है।
इस प्रकार भूधरदास का कुल समय वि. सं. 1756-57 से लगाकर वि. सं. 1822-23 तक लगभग 65 वर्ष निश्चित होता है।
अनेक ग्रन्थों के लेखक एवं सम्पादक प्रसिद्ध इतिहासविज्ञ डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल भूधरदास का साहित्यिक जीवन या रचनाकाल सिर्फ 15-20 वर्ष ही मानते है। इस सम्बन्ध में वे लिखते हैं - "भूधरदास का साहित्यिक जीवन
1. पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल पृष्ठ 75 2. पंडित टोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व,डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल पृष्ठ 75 3. पंडित रोडरमल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व,डॉ. हुकमचन्द पारिल्ल परिशिष्ट 1,
इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका-ज. रायमल पृष्ठ 346 4. सौ फागुण बदि ताई तहां ही पूजन होयगा वा नित्य शास्त्र का व्याख्यान, तत्वों का निर्णय, पठन-पाठन, जागण आदि शुभ कार्य चौथि ताहिँ उहां ही होयगा ।" वही पृष्ठ 340