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________________ 106 महाकवि भूधरदास : विलास में मग्न रहते थे तथा भौतिक सुखों की चरम सीमा पर पहुँचना ही उनका एक मात्र लक्ष्य था । इसीलिए उनके प्रभाव से भक्ति काल के राधा-कृष्ण रीतिकाल के साधारण नायक नायिका बन गये। रीतिकालीन कवियों ने राधाकृष्ण को आलम्बन बनाकर साहित्य को श्रृंगारिकता से सराबोर कर दिया । यद्यपि उस समय भी कुछ ऐसे कवि थे, जो श्रृंगार को अपने काव्य का विषय नहीं बना सके तथापि उनकी मुख्यता नहीं रही । श्रृंगारमूलक रचनाओं को अस्वीकृति की कड़ी में जैन कवि एवं साहित्यकार अग्रगण्य रहे । उन्होंने श्रृंगारिक रचनाओं की कटु आलोचना की तथा भारतीय संस्कृति और नैतिक आदर्शों को सुरक्षित रखने हेतु साहित्यिक रचनाएँ की । रीतिकालीन कवियों ने अपने आश्रय दाताओं को प्रसन्न करने के लिए श्रृंगारिक साहित्य का सृजन किया । एक ओर रीतितत्त्वों की मख्यता के कारण जहाँ पं. रामचन्द्र शक्ल ने इस काल को “रीतिकाल" तथा मिश्रबन्धुओं ने “अलंकृत काल" की संज्ञा दी । वहाँ दूसरी ओर पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने श्रृंगारिकता की मुख्यता देखकर इसे “श्रृंगार काल" के नाम से अभिहित किया। तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर कविगण शरण्य दरबार में श्रृंगार की सांस ले रहे थे। वे श्रृंगार के अतिरिक्त और कुछ लिखना ही नहीं चाहते थे और उनके आश्रयदाता श्रृंगार के अतिरिक्त और कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे। उस समय श्रृंगार रस की धारा अबाधित गति से बह रही थी। विलास की मदिरा पिलाकर कविएंगव अपने को कृतकृत्य मानते थे। वे कामिनी के कटि, कुच, केशों और कटाक्षों के वर्णन में ही अपनी कल्पना शक्ति को समाप्त कर रहे थे। कतिपय उद्धरण तत्कालीन साहित्यिक प्रवृति का परिचय देने के लिये पर्याप्त होंगे। निम्नलिखित पंक्ति में रीतिकालीन कवि ब्रह्मचर्य और पतिव्रत धर्म का कैसा मजाक उड़ाता है - “इहि पाखै पतिव्रत ताखै धरौं"। महाकवि देव परनारी संयोग को योग से भी कठिन बताते हुए कहते हैं । जोग हूँ ते कठिन संजोग पर नारी को" 1. "हिन्दी साहित्य का इतिहास' डॉ. नगेन्द्र पृष्ठ 291 2. नाटक समयसार बनारसीदास अन्तिम प्रशस्ति छन्द 18 एवं जैन शतक पद 65 3. “हिन्दी साहित्य का इतिहास" डॉ. नगेन्द्र पृष्ठ 291 4. प्राचीन हिन्दी जैन कवि मूलचन्द वत्सल पृष्ठ 7
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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