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________________ महाकवि भूधरदास : में सेवाभाव तथा सदाचार के अभाव में आज कोटि-कोटि रेडियो, टेलीविजन, पुस्तकें तथा व्यक्ति वह प्रभाव उत्पन्न नहीं कर पा रहे हैं ; जो एक सदाचारनिष्ठ एवं सेवाभावयुक्त संत सहज ही पैदा कर देता है, क्योंकि मनुष्यता उसके रूप तथा आकृति में नहीं, उसकी आचारनिष्ठ प्रकृति में है। सन्त धार्मिक होने के साथ साथ आध्यात्मिक पुरुष भी हैं । दया, क्षमा, प्रेम, मैत्री, करुणा, जैसे मानवीयगुण धर्म के प्रमुख लक्षण हैं ; जो व्यक्ति को समाज से जोड़े रहते हैं। धर्म में हृदय की पवित्रता तथा बुद्धि का नैतिक व्यापार भी सम्मिलित हैं। सन्तों की धर्मसाधना मोक्षरूपी परम साध्य का साधन है । इस साधना में “चित्तवृत्ति-निरोध" सिद्धान्त का पालन अनिवार्य है। मोक्ष रूपी साध्य की सिद्धि हेतु चित्त की एकाग्रता आवश्यक है और चित्त की एकाग्रता के लिए नाना वृत्तियों का निरोध जरूरी है। चित्त की एकाग्रता योगी और भक्त दोनों के लिए समान रूप से ग्राह्य है । एकनिष्ठ हुए बिना कोई भी सफलता न सुकर है न सुगम । फिर मोक्ष जैसी सिद्धि की क्या बात ? उसके लिए तो सचमुच जल से भिन्न कमल की तरह जीवन्मुक्त स्थिति लाना ही होगी । सम्पत्ति और सत्ता के प्रलोभन या आकर्षण से मुक्त होकर परावलम्बन छोड़ना होगा तथा आध्यात्मिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनना होगा। स्वावलम्बन के साथ-साथ स्वाभिमान जागृत करते हुए स्वमहत्ता को जानकर स्व में तन्मय हो जाना ही सच्चा अध्यात्म है और यही सन्तों का परम इष्ट (प्रदेय) है। सन्त और सन्तमत यद्यपि पुराकालीन है तथापि सन्त साहित्य व सन्त आन्दोलन परवर्तीकालीन है । सम्पूर्ण सन्त साहित्य या सन्तमत की आस्था आध्यात्मिक उन्नति एवं विकास में है । जहाँ "मैं और तू” “ज्ञाता-ज्ञेय", "गुण-गुणी" जैसे भेद भी तिरोहित हो जाते हैं। स्थायी सुख एवं सच्ची शान्ति आध्यात्मिक जीवन जीने में ही है । आध्यात्मिक अनुभूति (आत्मानुभूति) के अभाव में स्थायी शान्ति एवं सुख समृद्धि के विविध प्रयोग अनुभवशून्य तान्त्रिक जोड़-तोड़ से अधिक महत्त्व के नहीं हो पाते हैं। अतः सच्चा सुख एवं स्थायी निराकुल शान्ति पाने के लिए सन्तों और सन्तमत या सन्तवाणी की आवश्यकता एवं उपयोगिता आज भी है और आगे भी रहेगी।
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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