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________________ 89 एक समालोचनात्मक अध्ययन मात्र मनोवैज्ञानिक आभा नहीं, अपितु समाधिस्थ चित्त की एकाग्रता का प्रतीक भी है । उसमें सहज जीवन की सरलता ही नहीं, बल्कि तरल जीवन की आवेगमय गतिशीलता भी है। उसमें न केवल समसामायिक चेतना का स्फुरण है, अपितु शाश्वत मूल्यों का सतत अन्वेषण भी है। जहाँ उसमें लोककल्याण करने की भावना है, वहाँ रूढ़ियों को तोड़ने का साहस भी है । जहाँ इसके पीछे “आत्मवत् सर्वभूतेषु” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसी आर्ष ग्रन्थों की प्रेरणा है वहाँ साथ दिव्यदृष्टि- सम्पन्न सन्तों के अनुभव की परम्परागत विरासत भी है । इसीलिए वह परमतत्त्व है। अनुभवाश्रित सत्य की प्रतिष्ठा सभी जातियों, धर्मों एवं सम्प्रदायों, यहाँ तक की आस्तिक-नास्तिक दोनों के यहां भी समान रूप से स्वीकृत है। इसी सत्य को अपना विषय बनाना सन्तों का अभीष्ट एवं काम्य रहा है। इसलिए सन्त काव्य कोई वाद नहीं है, जिसके लिए विवाद खड़ा किया जाए । सन्तों का प्रदेय किसी सरकारी कानून जैसा नहीं है, जिसके लिए बाध्यता अनिवार्य हो अपितु वह तो सद्भावपूर्ण संकेत या सुझाव मात्र है, जिसमें आत्मकल्याण के साथ विश्वकल्याण की भावना निहित है, व्यक्ति हित के साथ समष्टि हित संलग्न है । उनके काव्य में व्यक्त क्षोभ या विद्रोह किसी विशेष जाति, धर्म या सम्प्रदाय के प्रति न होकर समाज की अव्यवस्था तथा सांसारिक जड़ता के प्रति है । यह वैचारिक विद्रोह विप्लव के लिए नहीं; अपितु सुनियोजित सत्यनिष्ठ क्रान्ति के लिए है और वह क्रान्ति भी अनुभूतिपुष्ट एवं प्रामाणिक है । सन्तों ने मानवतावाद, समाजवाद और अध्यात्मवाद के विशिष्ट मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास किया; जिससे वैर-विरोध, कृत्रिम भेदोपभेद तथा सम्पूर्ण विषमताएँ स्वतः विनष्ट हो गयीं। सन्तों ने परिस्थितियों का परीक्षण तथा आत्मा का निरीक्षण करते हुए नवीन व्यवस्थाएँ दी, जो आत्मीयता का बोध तथा अनुभूति की सामर्थ्य पैदा करने में सक्षम हुई । यदि ऐसा न होता तो ऊँचे से ऊँचे आदर्श और व्यापक सिद्धान्त भी वाणी के विषय या बुद्धि के विलास बन कर रह जाते । सन्तों के समस्त प्रदेय या विषयवस्तु की विश्वसनीय कसौटी व्यवहार तथा सदाचार ही है । उन्होंने कर्मकाण्ड तथा बाह्याडम्बर से सेवापाव तथा आत्मसंयम सहित सामाजिक नैतिकता को अधिक महत्त्व दिया । व्यवहार
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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