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महाकवि भूधरदास
सी मान्यताओं को उसी टकसाल से निकालते हैं । सन्त काव्य के पदों में जो ज्ञान, निष्ठा, शारीरिक और मानसिक पवित्रता, बाह्याचारों का विरोध और वाक्संयम दिखाई देता है, उसका मूल स्रोत नाथ पंथियों का साहित्य और उसकी परम्परा ही है । ' सन्त मत नाथमत का उत्तराधिकारी है । स्वयं नाथमत महायान बौद्धधर्म से पर्याप्त मात्रा में प्रभावित है। इस प्रकार नाथमत, सन्तमत और उत्तरकालीन वैष्णव धर्म, महायान बौद्धधर्म से समानरूप से प्रभावित और सम्बद्ध है । आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी नाथपंथी योगमार्गियों पर बौद्धधर्म का प्रभाव स्वीकार करते हैं । उनके अनुसार " आर्येतर जातियों में बहुत पहले से ही विद्यमान दुःखवाद, वैराग्य, मूर्तिपूजा आदि बातें हिन्दू धर्म में बौद्ध धर्म से ही होकर आई हैं । " 5
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सन्तों की भक्ति के सम्बन्ध विद्वानों के विविध विचार हैं । जहाँ एक ओर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे मनीषी विद्वान मध्यकालीन भक्ति का कारण मुसलमानों के आक्रमण मानते हुए लिखते हैं- “देश में मुसलमानों का राज्य प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव और उत्साह के लिए अवकाश न रह गया। पूज्य पुरुषों का अपमान होता था और वे कुछ भी न कर सकते थे। ऐसी दशा में अपनी वीरता के गीत न तो वे गा ही सकते थे और न बिना लज्जित हुए सुन ही सकते थे। इतने भारी उलट-फेर के पीछे हिन्दू जनसमुदाय पर बहुत दिनों तक उदासी छायी रही। अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था ?"" वहीं दूसरी ओर हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ मनीषी आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का तर्कसंगत कथन है कि अगर हम भक्ति आन्दोलन को मुसलमानों के आगमन के परिप्रेक्ष्य में देखें तो इसका आरम्भ सर्वप्रथम उत्तरभारत में होना चाहिए था, क्योंकि मुसलमानों का आगमन उत्तर
1. हिन्दी साहित्य की निर्गुण धारा में भक्ति- डॉ. श्यामसुन्दरदास पृष्ठ 92
2. सन्त काव्य में परोक्ष सत्ता का स्वरूप- डॉ. बाबूराव जोशी पृष्ठ 126
3. सन्तों की सहज साधना - डॉ. राजदेवसिंह पृष्ठ 147
4. नाथ सम्प्रदाय - आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी पृष्ठ 59 सन् 1956 5. सूर साहित्य - आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी पृष्ठ 49 सन् 1956 6. हिन्दी साहित्य का इतिहास - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पृष्ठ 65
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