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________________ मदनजुद्ध काव्य अहिल्या (गुरु पत्नी के पास अपना कर्तव्य भूलकर) चला गया । अहिल्या भी (रागके वास) अपने को भूल गई । तब गौतम ऋषिने (दोनों) को शाप दे दिया । (शाप देने से) इंद्र के शरीरमें भगों का उदय हो गया । उस मदनने लंकापति रावण को भी डिगा दिया, जिससे उसे सीता (पराई नारी) को चुराकर लाना पड़ा (सीना पर रावण मोहित हो गया) रावण दौड़कर छलकर, सीताको बुलाकर ले आया और उसे अपने घरमें पख लिया । ऐसे मदनके वशमें देवता भी अपना-अपना सामान लेकर, भागकर चले आए । व्याख्या-मदन का अचिन्त्य प्रभाव मनुष्यों, देवों एवं तिर्यंचों पर पूर्णरूप से व्याप्त है । जब काम (मदन) का वेग किसी के मनपर चढ़ जाता है तब वह अपने को भूल जाता है और तप छोड़ देता है । वह राज्यशासन की उपेक्षा करके अपनी विषयाभिलाषाकी पूर्तिमें लग जाता हैं और परस्त्रियो का भोग करने वाला व्यभिचारी बन जाता है। छलकर परनारियों को चुरा लाता है और चोर बन जाता है । "विषयासक्तचित्तानां गुणः को वा न नश्यति । न वैदुष्यं न मानुष्यं न कुलं नाभिजात्य वाक् ।।" इसी प्रकार नारियाँ भी इस काम के वशमें होकर अपने धर्म कर्म एवं पति को भूल जाती हैं और परपुरुष में आसक्त हो जाती हैं । सभी पुरुष-नारी मदनराजा के वशीभूत हो रहे हैं । कामदेवकी महिमा अपूर्व जिनि संन्यासी जतीय सार जंगम सु जटाधार जोगीय मंडित छार घालिय रसे । जिनि भरड भगवै वेस त्रिदंडी लुंचित केस । काली पोस दरवेस किं किं न छले । जक्ख रक्खस गंधा गुरु सुभट सबल सुर पसुन पंखिय धर किनिय थुणो । आयौ आयौ रे मदन राइ दुसर् लग्गउ घाई चलिम सुर पलाइ गहिवि तिणो ।। ४८।। अर्थ—उस मदनराजा ने बड़े-बड़े संन्यासी, उत्तम यति (तपस्वी साधु) जंग जटाधारी (घूमने-फिरने वाले) योगी महात्मा तथा क्षार (भस्म) से शरीर को मंडित करने वाले वैरागी ऋषियों को तप से छुड़ाकर अपने रस (विषय-सेवन) में डाल दिया उसने भगवाँ (गेरुआ वस्त्र) वेशके धारक
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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