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मदनजुद्ध काव्य
सभी सुभटोंको इकट्ठा किया । उन योद्धाओंने पुष्परूपी धनुष (हाथों में ) लिए और उनपर भ्रमर रूपी पणच (डोरी) चढ़ाई । उनपर तरुणी स्त्रियों के दृष्टिबाण चढ़ाए। उनको देखने मात्र से कौन-कौन नहीं छले गए? इसप्रकार उसकी आणीक (सेना) कुंत, कृपाण और पांच बाण (दर्शन, मोहनीय, वशीकरण, चिन्तन, भोजन, विस्मरण) अपने धनुष पर संधान किए। उस (मोहराजा) ने जगत (तीनो लोकों) में अपनी आज्ञा फेरी ( भेजी ) सबको युद्ध में आनेके लिए संदेश दिया कि मैंने रण मांड (युद्ध प्रारम्भ ) दिया है । सब देवों में खलबली मच गई कि दुस्सहमदन राजा आया है। वह आया, दौड़कर कहने लगा-लगो-लगो (शामिल होओ ) । तन्त्र सब देव भी अपना-अपना तृण ( सामान) लेकर दौड़ पड़े ।
व्याख्या - जब युद्धकी घोषणा होती है और बाजे बजने लगते हैं सभी वीरोंके हृदय में लड़ाईका आवेश जागृत होता है। नारियों की विशेष सेनासे सुसज्जित होकर युद्ध करना ही राजा मोह की विशेषता है। इस सेना के दृष्टिबाण से बड़े-बड़े विवेकी वीर आहत हो जाते हैं। चेतनके विवेक रूपी राजा को फँसाने में यह नारी सेना पूरी तरह समर्थ हैं। इस नारी सेनाके साथ यदि दूसरे कारण भी मिल जाए तो सभी वीर पराजित होकर मोहराजाके कैदी बन जाते हैं । संसारमें गुद्धकी ऐसी दशा प्रतिसमय हो रही हैं । कोई विरले विवेकी वीर सम्यक्त्व रूपांगज पर सवार होकर, पंचव्रत रूपी वाण धारण कर शान्ति से बैठे अपनी स्वतंत्रताको प्राप्त करना चाहते हैं। यह मोहराजाको रास नहीं आया और उसने युद्धकी भेरी बजवादी कविने इसी युद्धका वर्णन वीररस के परिवेश में किया है।
जिनि मलिउ संकर मानु छोडिउ अंतरध्यानु गौरी संगि हित प्राणु इव नडियं जिनि तपहु विरंधि टालि घालियउ माया जाति मोहिनि रूप निहालि फंदि पडियं ।
वसि
दिणो ।
हरिलियउ मदनि कसि सोलह सहास रहिउ गूजरि रसि रयणि आयौ आयौ रे मदनराड़ दुसह लग्गउ चलिय सुर पलाइ गहिवि अर्थ-उस मदन ने शिवजी का ऐसा भी अन्तरंगमें ध्यानसे वंचित कर दिया (वे
भी
१. ग. मल्यउ
घर
तिणो ॥ २४६ ।।
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मान मर्दन किया कि उनको अपने स्वरूपमें नहीं ठहर