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________________ मदनजुद्ध काव्य (घमण्ड) उसका समर्थ मन्त्री था । वह मिथ्यात्व रूपी हाथी पर आरूढ़ हुआ । उसके सप्तव्यसन रूपी तेज घोड़े ये । मोह राजाने (अपने वक्ष पर) कुशील नामक सण्णाह (कवच) धारण किया कुशास्त्र पाप रूपी बाजे वजने लगे । गलको माट शत्र , 5पमें सिर पर धारण किया । कषाय रूपी चंवर दुराए जाने लगे । इस प्रकार रतिका पति कामदेव व्यूह बनाकर गम्भीर (दिशाओंको बधिर करने वाली) गर्जना करता हुआ पुण्यपुरीकी ओर चढ़ा । व्याख्या--कविने यहाँ युद्धका रूपक प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार कोई भी राजा युद्ध करते समय अनेक प्रकारके शस्त्रोंको धारण करता हैं, कवच धारण करता है तथा साम, दाम, दण्ड और भेदनीतिसे काम लेता है, कभी-कभी वह छल्न-बल से भी काम लेता है । उसी प्रकार यहाँ भी मोहराजाके छल नामक मंत्री का उल्लेख किया गया है । मोहराजाने अपने मिथ्यात्व प्रमाद, कषाय और योग अस्त्रोंके द्वारा सभी चेतन आत्माओ को अनादिकाल से अपने वश कर रखा है । अपने आत्मा के ज्ञानरूपी धन को लूट लिया है और योहरूपी मदिरा पिलाकर विषयोके शरीर को मोहित कर लिया हैं, जिसके कारण उनमें ऐसी शक्ति नहीं रह गई हैं कि वे होशमें आकर अपने स्वरूप को जानकर, लड़ सकें । जब यह आत्मा काललब्धि पाकर, विवेकके द्वारा सावधान होकर मिथ्यात्वादि बंधके कारणों पर प्रहार करके, संवर-निर्जराको प्राप्त करता है तभी अपनी स्वतंत्रताको प्राप्त कर पाता हैं । यह युद्ध वसन्त ऋतुमें प्रारम्भ हुआ। संसार में यही समय लड़ाई के लिए उपयुक्त माना गया है | दुस्सह मदनराज का पराक्रम चड्डिउ गहिरु गज्जंतु घोरि मानइ न संक ओरि सुभटु आपणु जोरि अतुल बले । तिणि कुसम कोबंड लिय भमर पणच किय देखत तरुणि तिय कि किं न छले । सजि अणीय कुंत कृपाण संधिय पंचउ बाण फेरिय जगति आण मंडिवि रणो। आयो आयो रे मदन राइ दुसह लग्गउ घाइ चलिय सुर पलाइ गहिदि तिणो ।। ४५।। अर्थ-वह मदन राजा घोर गम्भीर गर्जना करता हुआ (अपने लिए) किसी ओरसे शंका न मानता हुआ आगे बढ़ा । उसने अपने अतुलबली
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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