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________________ मदनझुद्ध काव्य २७ वीरों का रस पहले ही सुख जाता है, जिनका स्पर्श करने मात्र से पुरुषों के शरीरका तेज नष्ट हो जाता है तथा उनके साथ मैथन से आय भी क्षीण हो जाती है, पुन: कहो कि इन नारियों से किन लोगों को सुख की प्राप्ति हुई है? ऐसी (विशिष्ट) महिलाएँ गीत गातीं और वीणा बजाती है । ऐसी तरुणियोंके साथ वसन्त ऋतुराज आकर उपस्थित हो गया है। व्याख्या-कविने कामिनी और कामी पुरुषोंकी स्वाभाविक दशाका सुन्दर वर्णन किया है । कामके पाँच वाण होते हैं-दर्शन, मोहन, चिन्तन, स्पर्शन और मैथुन । ये नारियोंके शरीरमें विद्यमान रहते हैं । जब वसंत ऋतु आती है तब सभी नर-नारियोंके शरीरमें ऐसी कान्ति आ जाती है, कि गाकर ते गायर में पता हो जाते हैं । दर्शन नामक वाण अर्थात् वक्र अपांगवीक्षणोंसे नारियाँ पुरुष को अभिलाषिणी हो जाती हैं और पुरुष नारियों के । फिर दर्शनसे घायल अर्थात् आहत होकर सभी अपना रूप (कर्त्तव्य) भूल जाते हैं । उनके चित्तका ऐसा मोहन और वशीकरण होता है कि बड़े-बड़े शक्तिशाली राजा तक नष्ट हो जाते हैं । शरीरमें काम-ज्वर फैल जाता है । हृदय का ऐसा वशीकरण हो जाता है कि नहीं सुन्दरी उनके मन में चिन्तन में आती है । दूसरी बात अच्छी ही नहीं लगती । उससे संयोग न होने पर श्वासोच्छवास लेते हैं । खाने-पीने एवं निद्राका कार्य भी छूट जाता है । अन्तमें मरण कर बैठते हैं और यदि कहीं संयोग मिल गया तो उससे उसका पुरुषत्व रूप आत्मवीर्य तेज नष्ट हो जाता है । तेजके नष्ट हो जाने पर फिर वह मैथुनों में प्रयुक्त हो जाता है । उन भोगों में अनुरक्त होकर वह अपनी अमूल्य आयु को क्षय कर देता है । प्राण देकर मरण को प्राप्त हो जाता है । नारियोंके इन पंचवाणों से संसारमें और पुरुष पराजित हो जाते हैं । यहाँ मोह राजा के युद्ध वर्णन में कवि ने सर्वप्रथम इन्हीं वीरांगनाओं को प्रस्तुत किया है । यथा-- मत्तेभकुम्भदलने भूवि संति शूराः केचित्प्रचण्डमृगराज वधेऽपिऽदक्षाः। नूनं ब्रवीमि अलिनां पुरतिः प्रसह्य कंदर्पदर्पदलने विरला : मनुष्या ।। जे दषु देखत चितु रंजहिं सीलु सत्तु गंवावहिं । जे चहुंगति महिं अनंत जम लगु बहुत दुःख सहावहिं । चिति अवरु चिंतहि अवरु जंपहिं अवरु जगु पतियाइयं गावंत गीय वर्जति बीणा तरुणि पाइक आइयं ।।४३।।
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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