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________________ मदनजुद्ध काव्य हाकंति हसतिक कुकंति कुरलति मुछति भडलहरी विसे । जे विकट बुद्धिहि हरहिं परचिसु चरित- भेद न पाइयं । गावति गीय वर्जति वीणा तरुणि पाइक आइयं ।। ४१।। अर्थ—उन तरुणी महिलाओंने रागके स्थल (आनन्दके स्थान) कटिभागको रेशमी वस्त्रोंसे बाँधा अर्थात् वे प्रेमयुद्धके लिए कटिबद्ध हो गई हैं । उन्होंने अपने हृदयको जिरह (कवच) रूप कंचुकी (चोली) से कसा (जिससे वे किसीके प्रेम बाणसे घायल न हो सकें) है । वे नारियाँ उस समय युद्धकी तरंगोंके मध्य भटों (वीरों) को युद्ध के लिए बुलाती हैं । वीरों पर हँसती (तू कायर) हैं, जोर से कूकती हैं, कुरलती है, दौड़ती हैं, जिससे भट (वीर) मूञ्छित हो जाते हैं । वे अपनी कपट बुद्धिके द्वारा दूसरों के चित्त का हरपा कर लेती हैं । कोई भी उनके चरित्रभेदको नहीं जान पाता । इस प्रकार बसन्त के आगमन पर युवतियों विजयके गीत गाती और वीणा बजाती हैं ।। व्याख्या—यहाँ पर कविने नारियोंको शरीर-व्यवस्था से युद्ध की कुशलताका वर्णन किया है । उन्होंने युद्धका सुन्दर रुपक प्रस्तुत किया है । नारियाँ वसन्त ऋतु की सेना हैं । वीर सैनिक पहले अपने शरीरकी रक्षा का उपाय करते हैं, जिससे यद्ध करते समय उनके शरीरको कोई आघात न पहुँचे । वे अपने बलका ऐसा प्रसार करते हैं कि शत्रुसेना उनके सम्मुख न ठहर सके । ऐसी व्यवस्था प्रकृति द्वारा प्रदत्त है । यहाँ नारी रूपी सेना ने अपने शरीर की सुरक्षा के लिए पूरी तैयारी कर ली हैं । उनके कटाक्ष ही तीक्ष्ण बाण हैं । केशपाश बन्धन हैं । चोली का पहनना, जिरह कवत्र है । कटिबन्धन बड़ा बन्धन. हैं, जो भी पुरुष उन पर दृष्टि डालता है, बन्धन में बंध जाता है । उनके नूपुरों की ध्वनि युद्धके नगाड़े हैं । उनके बजते ही कोई भी पुरुष खड़ा नहीं रह पाता । उन नारियोंकी शक्तिके सामने सभी वीर पराजित हो जाते हैं । कविने शरीरकी स्वाभाविक रचना द्वारा राग-युद्ध का चित्रण किया हैं तथा शृंगार-रस की अपूर्व महिमाका मनोहारो वर्णन प्रस्तुत किया है । देखत दरसणु जिन्न केरउ रूपु पहिले नासए तिन्ह साथि परसु करतं खिणमहि तेड तणा पणासए । मेहुणु करंतहं आउ छीजइ कहहु किनि सुख पाइयं । गावति गीय बजति वीणा तरुणि पाइक आइयं ।। ४२।। अर्थ-जिन कामिनी तरुणी महिलाओंके सौन्दर्य के दर्शन मात्र से
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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