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________________ मदनजुद्ध काव्य के प्रकाश में कौन-कौन से वीर नहीं डूब गए? कायर तो डूबते ही हैं, शक्तिशाली पुरुष भी चकाचौंधमें आ जाते है । ऋतुराज वसन्त नारियों के शरीर पर कामका ऐसा विशेष प्रभाव प्रकट कर देता है, जिससे वीर पुरुष भी निस्तेज हो जाते हैं । जिन्ह सिहिण गिरिवर रोम वण धण नख सु असिवर करि ठए इनु मग्गि चल्लत समर तसकर कहह नर कित्तिय हए 1 बज्जत घपारव खिद्ध नपुर काछि कुसुम वणाइयं । गावंति गीय पति वीणा तरुणि पाइक आइयं ।। ४०।। अर्थ-उन तरुणी नारियोंके स्तनही श्रेष्ठ-पर्वत हैं तथा उनकी रोमावलि सघन वन के समान है एवं नख ही उत्तम तलवार के रूप में स्थित है : ऐसे वित्रय-मार्गमें स्मर (कामदेव-मन्मथ) नामके चोर भी घूमते रहते हैं । उन्होंने मार्ग मे चलने वाले न जाने कितने लोगोंको मार डाला है । उन (नारियों) के नुपूरों के शब्द ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे यम के घन शब्द ही ध्वनित हो रहे हों । उन तरुणियों ने चुन-चुन कर सुन्दर पुष्पमालाएँ बनाई हैं । वे तरुणियों गीत गाती और वीणा बजाती हैं, इस प्रकार वसंत ऋतुराज (उछलकर) आ गया । व्याख्या-कवियों ने राग विषयक जिन काव्योंकी रचनाकी है, उनमें नारियोंके अंगों का वर्णन इसी प्रकार किया गया है। उनके सभी शारीरिक अंग कामोद्दीपक हैं । यह भागों का मार्ग अतिविषम मार्ग है । उस मार्ग में स्तनरूपी उच्च पर्वत हैं, पर्वतों के तल भाग में महान् भयंकर वन हैं । इस मार्ग में जो भी प्रवेश करते हैं, वे मोमासक्त हो जाते हैं । वहाँ पर घूमने वाले चोर उन कामी पुरुषोंका बुद्धि रूपी धन छीनकर मार डालते हैं अथवा वे कामीपुरुष भोगासक्ति से घायल हो जाते हैं या कामदेव द्वारा फँसा दिए जाते हैं । वे शरीर रूप विषय-मार्ग के जधन छिद्रों में पड़े रहते हैं, जहाँ से पार हो पाना अत्यन्त कठिन है । वहाँ इतने जोर से बाजे बजते हैं कि वे "नर" बुद्धिमान होते हुए भी उपदेशको नहीं सुन सकते । कविने "नर" शब्द का उल्लेख चतुर, विवेकी पुरुषोंके लिए किया है कि वे भी हीन, नीच कामी पुरुष बनकर अपने उत्कृष्ट जीवन को व्यर्थ ही खो देते हैं । यह मैथुन ही संसार में छोटे से लेकर बड़े जीवों (तिर्यंच, मनुष्य) सबके हृदय में प्रविष्ट है । उसी राग भाव का स्थायी भाव वसन्त ऋतुराज है ।। जिन्ह राग कटि बद्धिय पटवर जिरह उरि कंचुय कसे
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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