________________
२४
सदर काव्य
वान बजाती है । उनको सुनकर श्रवणेन्द्रिय से भी वीर पुरुष उन्मत्त हो जाते हैं । विरहीजन भी अपनी-अपनी सहचरीको याद करने लगते हैं । वैराग्यका तो स्मरण ही नहीं रहता । ऐसा विचलित कर देने वाला ऋतुराज वसन्त आकर खड़ा हो गया ।
जिन्ह तिलक मृगमद तिक्ख भल्लिय चीर धजकरकतियं । जिन्ह कानि कुंडल कंद मनमथ गूढ पडि बझंतियं । जिन्ह दंत बिज्जुल चमकि लग्गहि कु को को न दहाइयं । गावंति गीय वर्जति वीण्या तरुणि पाइक आइयं ।।३९।।
अर्थ-उन तरुणी नारियों ने अपने तीक्ष्ण (तीखें) भाल (मस्तक) पर कस्तूरी का तिलक और वस्त्र धारण किया । उनका वह वस्त्र ध्वजाके समान फहराने लगा । जिन्होंने अपने कानोंमें कुण्डल धारण किए वे ऐसी प्रतीत हो रही थीं, मानो मन्मथ ने (युवतिजनी के माध्मय से) मूढ़ जनो को ही प्रतिबन्धित कर लिया हो । उन तरुणियोंके दाँत बिजली के सदृश चमकने लगे । उस बिजलीके प्रकाशमें कौन-कौन नहीं डूबे? इसप्रकार पाइक (वसन्त-ऋतु) के आगमन पर तरुणियाँ गीत गातीं और वीणा बजाती
व्याख्या-कविने यहाँ वसन्त ऋतराज के वर्णन में स्त्रियोंको प्रथम स्थान दिया है । क्योंकि नारियोंके रागरसके भ्रम में सभी भूले हुए हैं। पुरुषोंको जीतने का उपाय नारियाँ हैं । स्त्रियों के प्रत्येक अंग मोहित करने वाले होते हैं, जिसके कारण बड़े-बड़े वीर भी अपने कर्तव्यसे च्युत हो जाते हैं । कवि ने उसका निम्न प्रकार वर्णन किया है-कस्तूरी भी रागवर्द्धक होती है । कस्तूरी खाई भी जाती है और लगाई भी जाती है । यहाँ नारियों ने कस्तुरी के टेढ़े-मेढे तिलक अपने मस्तिष्क पर लगाए हैं, जिन्हें देखकर वीर भी चलायमान हो जाते हैं । नारियों ने उत्तम वस्त्र धारण किए हैं । वे वस ही ध्वजा का कार्य कर रहे हैं। बिना ध्वजा के कोई भी कार्य नहीं होता । युद्ध के कार्य में तो श्वजा प्रधान है । इसलिए जब ध्वजा फहराती है, तो ऐसा प्रतीत होता है मानों लड़ाई में विजय हो रही हो ।
उन नारियोंने कानोंमें विशेष रूप से कुण्डल बाँधे, मानों कामदेव ने मूढ़ जनों को बाँधा हो । मूढ़ जन मोहित होकर स्वयं भी वहाँ बँध जाते हैं और फिर उस स्थान से नहीं हटते । उन कुण्डलों का ऐसा अपूर्व तेज था । उनके दाँत बिजली के समान चमकते थे । उस बिजली