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मदनजुद्ध काव्य
कूकने लगती हैं । जिन भ्रमराको शीत ऋत में पुष्प प्राप्त नहीं होते थे वे ही भ्रमर वसन्त ऋतुमें केतकी पुष्पों पर मधुर रुणझुण ध्वनिसे गुंजार करने लगते हैं । इसीलिए वसन्त ऋतु सब ऋतुओं का राजा है । जिन्ह कुटिल केस कलाप कुंतल मंगि मोत्तिय धारियं । जिन्ह वेणि भुवग रुलंति पंकज गुथि कुसुम जिन्ह समुह अनुहर धरिय सम्मुह नयण बाण गावंति गोय वजेति वीणा तरुणि पाइक आइयं ।। ३८ ।। अर्थ - उस (वसंत के आगमन पर ) समय तरुणी नारियों ने अपने कुटिल केशोंको सँवारा और इन कुंतलों की माँग को मोतियों (मोत्तिय पुष्प) से सज्जित किया । जिन महिलाओं ने उनकी (केशों की) चोटियाँ गूँथी, वे (चोटियाँ) सर्प के समान प्रतीत हो रही थीं । उन चोटियों को अपने कमल - पुरुष के द्वारा सुसज्जित किया । जिन स्त्रियों ने अपनी भौंहोंको संवार कर तीक्ष्ण किया, वे इस प्रकार लग रही थीं, जैसे- उन्होंने धनवीरोंके सम्मुख नेत्र रूपी वाण धनुषों पर चढ़ाए हों । तरुणी नारियाँ (सौन्दर्ययुक्त होकर ) गीत गाने लगीं और बीणा बजाने लगीं । इस प्रकार ऋतुराज वसन्त का आगमन हो गया ।
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संवारियं । चडाइयं
व्याख्या - शीत ऋतु में नारियाँ केश सँभालना भूल गई थी किन्तु वसन्त ऋतके आने से उनके शरीर में विशेष अनुराग प्रकट होने लगा इसलिए उन प्रमदा नारियोंने अपने टेढ़े बिखरे केशों को सम्हालने का कार्य किया । उन्होंने अपने केशोंमें मोती अर्थात् मालती और बेला पुष्पों की मालाएँ धारण की । त्रे पुष्प ही मोतीके समान थे। उनकी चोटियाँ नागिनके समान लहराने लगीं। वे नागिन इसलिए थी, कि जिस प्रकार कोई नागिनी के पास जाय तो वह डँस लेती है, उसी प्रकार वीर पुरुष भी उन केशोंकी वेणी के दर्शन मात्र से ही राग से घायल हो जाते हैं। नाग-नागिनीको सुगन्धित पुष्पों पर निवास करना अच्छा लगता है इसलिए युवतियोंने केशों की वेणीको पुष्पसे गूँथकर बगीचा बना दिया । उसी राग रूप पंचेन्द्रिय विषयों में प्रवृत्तिरूप सर्पिणीका निवास हो गया ।
उन नारियोंकी काली वक्र रोमवाली भौंहें ही धनुष थीं, जिन पर नेत्र रूपी बाण चढ़े रहते हैं । उन वाणों के द्वारा वीर पुरुष भी कायर हो जाते हैं । उस समय वीतरागी साधु भी विचलित हो जाते हैं । उस वसन्त ऋतु में युवतियाँ राग के ही गीत गाती तथा मधुर ध्वनिवाले रागवर्धक