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मदनजुद्ध काव्य
मोह की ओर से यदि "अज्ञान'' नामक वीर आया तो उससे लड़ने के लिए आदीश्वर प्रभु का 'ज्ञान' नामक वीर आया । इसी प्रकार मिथ्यात्व के साथ सम्यक्त्व, विषय के साथ संयम, क्रोध के साथ उपशम आदि अन्यान्य वीर परस्पर में युद्ध करने लगे । शुभ भावों से अशुभ भाव एक-एक कर हारने लगे । ( 103-124 )।
उसके बाद मोह के साश्व युद्ध करने के लिए विवेक नामक शूरवीर मैदान में आया ( 124 ) । मोह और मदन अपनी अनीक ( सेना ) (130) एकत्रित कर उससे आ भिड़े और परम्पर में खड्ग तथा पीत लेश्या और शुभ लेश्या रूपी गोले मोटने लगे ( 1300। इस भीष्ला युद्ध को देखकर ऋषभदेव अपने संयमरूपी रथ पर आरुढ़ होकर युद्ध भूमि की ओर चले ( 131 ) । उनके रथ में तीन गप्ति रूपी हाथी जुटे हए थे । पाँच महानत रूपी सभट उनके साथ थे। उन्होंने ज्ञानरूपी तलवार हाथ में लेकर क्षमा को सामने रखा । सम्यक्त्व ने प्रभु के सिर पर त्रिरत्न रूपी छन तान दिया 1 आगम-स्वर रूपी बाण छूटने लगे, जिसे देखकर कुमति रूपी कायर मनुष्य का हृदय थर्राने लगा और वह जोर-जोर से गर्जना करने लगा- 'हे मदन, त यहाँ से भाग-भाग । ये आदिनाथ प्रभु तेरे सिर के ऊपर ऐसा प्रहार करेंगे, जिससे कि तू नष्ट ही हो जायेगा ( 132-136 ) ।
अन्नतः आदिनाथ स्वामी ने ध्यान रूपी सर्प से मदन पर प्रहार किया, जिससे वह खण्ड-खण्ड हो गया ( 1366 ) तत्पश्चात् उन्होंने प्रचण्ड मोह और कलिकाल को दुस्सह रूप से बाँधकर भूमि पर पटक दिया ( 137 ) और इस प्रकार आदिजिनेन्द्र ने मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
युद्ध वर्णन प्रसंग में समानता--
जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है, कवि बुचराज का समय भारत पर विदेशी आक्रमणों का समय था । जनमानस उससे भयाक्रान्त और देवश जैसा हो रहा था। अतः युग की पुकार पर अनेक संवेदनशील कवि निर्भीकतापूर्वक सामने आये और उन्होंने जन-नैराश्य को अपने कवि-कर्म द्वारा दूर करने का अथक प्रयास किया । इस दृष्टि से उत्तरकालीन अपभ्रंश मिश्रित हिन्दी-काव्य प्रमुख हैं । परवर्ती हिन्दी कवियों पर भी उनका पर्याप्त प्रभाव पड़ा । कवि वृचराज भी उसके अपवाद नहीं । देखिए कवि वृचराज चंदवरदाई कृत "पृथिवीराज रासो' से कितने प्रभावित हैं ? तुलनात्मक दृष्टि से कुछ पंक्तियाँ यहाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं :1. गज घंटन हय खेय विविध पसुजन समाजइव ।
___घन निसान घुम्मरन प्रचलपरिजन समथ्थनव ।। ( पृथिवीराजगसा कनवऊजसमय 134 ।
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