________________
४२
प्रस्तावना ने प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और कामदेव के मध्य भावात्मक युद्ध का वर्णन किया है, जो त्रीरोचित् उत्साहपूर्ण एवं नीतिपूर्वक हुआ है । कवि न सैन्य-संगठन ( 35-36 ) व्यूह रचना ( 44/186/2 ), सैन्य-संचालन ( 86/2 ), तुरंगिणी सेना ( 361 1 ) एवं अस्त्र-शस्त्र ( 130- ) का जिस प्रकार वर्णन किया है, उससे प्रतीत होना है कि या तो कवि ने स्वयं युद्ध में भाग लिया था अथवा युद्धों का दिग्दर्शन किया था, या फिर उस युग में युद्धों का इतना जोर था कि कवि उस प्रभाव से अपने आपको मुक्त नहीं रख पाया । चूंकि 11 वीं सदी से लेकर 16वीं-17 वीं सदी तक छोटे-छोटे राजे-रजवाड़े भी कंचन, कामिनी या फिर राज्य-विस्तार की लिप्या के वशीभूत होकर आपसी वैमनस्य के कारण परस्पर में भीषण युद्ध करते रहते थे। दूसरी ओर उसी समय से भारत में विदेशी आक्रमण भी प्रारम्भ हो गये थे । इतिहास-प्रसिद्ध मुहम्मद गोरी, महमूद गजनवी और बाबर आदि ने जिस प्रकार के भीषण युद्ध किए थे, उससे लोगो का हृदय दहल गया था । उन युद्धों की स्मृति ही सदियों तक जन-मानस में सिहरन पैदा करने में समर्थ थी । प्रतीत होता है कि यद्धों की उसी भयावहता ने कवि को प्रेरित किया होगा । अतः उन्होंने भी मानात्मक गद्ध के FT मानत यह के. सजीव चित्रण का अवसर निकाल लिया ।
मध्यकालीन भारतीय रण-नीतियों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट आभास होता है कि उक्त युद्ध वर्णन प्रारम्भ से अंत तक वैज्ञानिक और नीतियुक्त है । दोनों पक्ष युद्ध के पूर्व अपनी सभा एकत्रित कर मंत्रियो के साथ विचार विमर्श करते ( 3132, 5313, 54 ) है, तब युद्ध की घोषणा की जाती है । सेना प्रस्थान करने से पूर्व युद्ध के वाद्य बजाए जाते हैं, ( 3672, 4413 ), जिससे कि चारों ओर युद्ध का समाचार फैल जाता हैं |
कवि के वर्णनानुसार ध्वजा-पताकाओं को फहराती हुई ( 133/1 ) चनुरंगिणी सेना ( 36/1 ) चली । सर्वप्रथम पैदल सैनिकों का दल ( 4411, 133/31 चला, उसके पीछे हाथियों की सेना ( 44/2, 88/1-2), उसके पीछे चंचल घोड़ों का दल चला ( 44/2), तत्पश्चात् रथ पर अन्य वीर सवार होकर चले ( 1351 4 ) । कामदेव भी हाथी पर चढ़कर चला । उसके सिर पर छत्र लगा हुआ था और चंवर दुल रहे थे।
उसने पहले आदीश्वर के आगम और अध्यात्म ( 9212 1 नामक दूतों को बुलाकर प्रभु के पास अपने आने का अभिप्राय बतलाया और कहा कि-"अपने स्वामी से कहो कि तुमसे युद्ध करने के लिए मदन राजा अपनी सेना सहित आ पहुंचा है ।" विपक्षी सेना भी अपने पूरे साज-बाज के साथ आ पहुँची । तत्पश्चात दोनों पक्षों में तुमुल बुद्ध होने लग' । बराबरी के वीर परस्पर में भिड़ गए । जस मदन