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________________ 4, प्रस्तावना "रहहि सि किम घण घट्ट जुड़िया सत्र सैन मिलिय गजथट्ट । सब मिलि चले सुभट्टै पयाणओ कियउ भडु मोहु ।। ( मयण 88 ) हक्कारयो हेजम्म कवि निकट बोलि नप ईस । सरसें बर संभारि करि कवि दीनी असीस ।। ( वहीं 140 ) हक्कारि भड़ चरितं सज्जिउ तप सैन् सबल संबृहा । गहगहिउ जैन चित्तं जव चल्लिर रिसह जिणणाहो :। दही० ! कितक सूर संभरि नरेस अंदेस कहत करि । कितक देस बल बंधि राव रावत्त छत्र धरि ।। वहीं0 154 ) को पट्टणु वर नयरु कवणु सवल भूपति डिगायउ । किस छत्तुं विहंडिया करिवि बंदि कहु कासु ल्यायउ ।। वही0 6। ।। उठे हथ्य हक्कं कहं कूइकालं जुटे जोध जोखंतुहै ताल तालं । सुभट्टै सुथट्टे सुरीसं समेकं भई सेलमेलं अनी एक एकं । लुटेबान चहुआन आवद्धराजं लगे पेछ मनों वज्र बाजं फुरे संगि संनाह के अंग अंग उठे श्रोन छिदै जरै जानि ढंगं । ( वहीं बड़ी लड़ाई समय 128 ) वै अणिय जोडि जुट्टिय भुवाल तहँ पडहिं खग्ग जुण अगणिझाल । ( वही ० 130) “दोनउ ढुक्के सबल दल मिलिय सुभट मुख जोडि रणु देविखवि जे नर खिसहिं तिन्हकी जननी खोडि ( वही० 101 ) रण अंगणु देखिवि शूरवीर पेरणी जेम नच्चहिं गहीर ।। ( वही० 102 ) 5-6. चढ़ि चलन राज आवाज कीन नीसान नद्द बज्जे बजीन । चिहु ओर भरनि छुट्टे तुरंग सजि सिलह भाँति नाना अभंग ।। फट्यौनि सीस भइ पंच फारि गजदयों जानि गिरिवर विसार । वही० "गुद्धिमत्तु गयणु गज्जित सज्जिउ दल विषभु चहु पवारेण । हरि वंभ ईसु भज्जिट वज्जिउ जब गहिरुनिस्साणु । वही0 36 "जब बात सणि यह मोहराइ तब जलिउ बलिउ उट्ठिठ रिसाइ । वही0 8 मोहराज तब गज्जिया दलबल सेन विथारि (9) वाद्य एवं संगीत कवि के प्रायः सभी वर्णन-प्रसंग अत्यन्त सुन्दर और सुरुचि सम्पन्न हैं । फिर भी उनमें से वसन्तऋतु का आगमन ( 37-43 ) अतीव आकर्षक, प्रांजल, प्रभविष्ण और आलंकारिक भाषा-शैली में वर्णित हैं। इन्हीं प्रसंगो में विभिन्न वाद्यों के भी
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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