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प्रस्तावना तद्भव
परपंचु {52) सहज । 138 ) सेणिक ( 50 ) भवंग ( 38 ) सुरही (98) ईद ( 47 ) अनंगु ( 56 ) गुवात 3: दिन : : । मधी: :: : आदि । ब्रज
बइठ । 7 }टामि ( 19 ) श्रायउ । 20 गि ( 311 दीदी ( 22 ) कवण (70) कवण। 71 ) जन् ( 30 ) जिम। 31 ) बुज्झइ ( 125) इंदुहि । 135 )
आदि । देशी
खिद् ( 40 ) काधि ( 40 ) दुडे ( 62 ) बोछु ( 30 ) खिसर्हि ( 10 ) निहाले ( 100 ) जुहारू ( 21 ) घिरनी ( 102 ) आदि । अरबी शब्द
खोजत ( 14 ), नफीरी ( 134 ) फोज (95) खोइय ( 116 ) खोज ( 110 ) खबर । 31 ! दरवेस ( 48 ) आदि ।
मयणजुद्ध की भाषा पर अपभ्रंश का प्रभाव
1. अपभ्रंश भाषा की विशिष्ट प्रवृत्ति उसका "उकार'' बहुल होना है। यह प्रवृत्ति मयणजुद्ध की मात्रा में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । जैसे—कोप-कोप ( 34 ) निस्साणु=निशान ( 36 ), मत्तु मात्र ( 68 ) कंदप्पु-कंदर्प ( 35 ) आदि । 2. उपधा स्वर की सुरक्षा___मिरदंग-मृदंग ( 97 ) सम्मुह-सम्मुख (97) समुद-समुद्र (5) कुस्सीलु कुशील ( 110) आदि ।
कहीं कहीं अन्त्याक्षर में व्यंजन ध्वनि के लोप हो जाने पर उपधा और अन्न स्वर का संकोच भी हो जाता है । यथा
इत्ती-हानी ( 86 ) उचारु-उच्चारण ( 97 ) आदि ।
डॉ० जी० त्रिीय तगारे के अनुसार कुछ ऐसे स्वर-परिवर्तन के उदाहरण भी मिलने हैं, जिनमें सम्भवतः स्वराघात के अभाव अथवा समीकरण और विषमीकरण के कारण भी उपधा स्वर में गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है । जैसे :
मझु-मध्य ( 60 ) सवण-सुवण स्वप्र ( 100 ) आदि । 3. आदि स्वर लोप
द्धिगन सिद्धिगन ( 127 ). भिंनर आभ्यतर (6) नन्त=अनन्त ( 103 ) 4. अपभ्रंश में ऋस्वर के स्थान पर अ, इ, उ, और शि का आदेश हो जाता है । जैसे :