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________________ मदनजुद्ध काव्य "जब बान मुलगी यह मोहराइ । तब जलिउ बलिउ उठ्ठिउ रिसाई ।। ( 119 ) मयणजुद्ध का भाषा-सौन्दर्य मयजुद्ध की भाषा मुलनः उत्तर मध्यकालीन गजस्थानी है, जिस पर समकालीन अपभ्रंश और हिन्दी का प्रभार है । वस्तुतः इस नांध्यकालीन भाषा मानः जा सकता है . जिम्म सनर अश! भाषा से हिन्दी का विकास हो रहा था. उस समय की सन्धि-बला में प्रयणजद्ध की रचना हुई । इसलिए इसमें अपभ्रंश की प्रवृत्तियों का होना स्वाभाविक है, साथ ही आदिकालीन हिन्दी का प्रभाव भी परिलक्षित होता है । इन प्रवृत्तियों के मिलन के कारण इसकी भाषा में हिन्दी की उदारप्रवृत्ति भी कार्य कर रही हैं । अतः उक्त रचना में राजस्थानी, अपभ्रंश और हिन्दी शब्दों के साथ-साथ संस्कृतनिष्ठ, नत्सम, तद्भव तथा ब्रज, देशज और उर्दू, अरबी आदि भाषाओं के शब्द भी अपनी स्वाभाविकता और सरलता के साथ प्रयुक्त हुए हैं, उनकी वर्गीकृत संक्षिप्त सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं ! अपभ्रंश विण्णि ( 93 ) सनु ( 10 ) पहुत्ति ( 10 ) थापिउ ( 11 ), रज्जि { 11 ) विथारि (9) वियसिय {97 ) कण्ण ( 23 ) अगाह ( 131) नाह (131) राउ (28) मच्छरु ( 30 ) जीह { 17 ), जीय ( 15 ) थिरु ( 17 ) जती ( 18 ) धम्म ( 125 ) परमत्य ( 125 ) दल ( 126 ) अस्थि ( 126 ) अमिउ ( 4 ) कलमसु ( 4 ) सरवण्णु ( 3 ) आदि । संस्कृत तत्सम शब्द कमल (98), आवर्त ( 32 ). लवण (90) त्रिदंडी ( 48 ), कुंजर ( 34 ) द्रोह ( 13 ) भृकुटि ( 68 ) तरुणि ( 66 ) पावस (68) पटनर ( 47 ), ज्योति (98) कटक ( 135 ) निपान ( 135 ) केहरि ( 34 ) अनुपम (98) चीर (39) समर ( 32 ) अनुप्रेक्षा ( 133 ), आजा ( 1 38 ) सुरपति { 138 ) आदि । राजस्थानी बीडउ ( 35 ) मज्झि ( 3 ) पन ! 10 ) भरडाकृति ( 14 ). घण { 94) काई ( 94 ) थट्ट ( 88 ) घालि ( 47 ) धुकंती ( 99 }, अंबि ( 37 ) जणि (143), कइ ( 18 ) बांदरउ ( 30 ) पूछाण ( 22 ) हणिउ ( 104 ) हरख [ 53 ) जिवई ( 33 ) चरड, ( 26 ) हंढोरिला । 65 घणी ( 49 ). पाधड़ी (84) मन ( 31 ), दापडे ( 34 1 जूहड़ ( 31 ) आदि ।
SR No.090267
Book TitleMadanjuddh Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuchraj Mahakavi, Vidyavati Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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